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धमाका खास खबर: चीता, तेंदुए, बाघ, एमपी हमारा सरताज, विश्व वन्यजीव दिवस पर विशेष

शनिवार, 2 मार्च 2024

/ by Vipin Shukla Mama
*डॉ. केशव पाण्डेय
ग्वालियर। प्राकृतिक समृद्धि के प्रतीक वन्य जीवों से हमें भोजन तथा औषधियों के अलावा अनेक प्रकार के फायदे मिलते हैं। वन्य जीव जलवायु को संतुलित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पर्यटन के क्षेत्र में रोजगार को बढ़ावा देते हैं। प्रदेश में वन्य जीवों के बढ़ते कुनबे ने देशभर में हमारे एमपी को सरताज बनाया है। विश्व वन्यजीव दिवस पर जानते हैं प्रकृति और जन जीवन में वन्य जीवों का महत्व और इनका प्रभाव
3 मार्च को दुनियाभर में विश्व वन्यजीव दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य मकसद जंगली जीवों के संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाना है। प्रकृति ने हमें अनगिनत वरदान दिए हैं, जिनमें से एक है वन्यजीव। ये जीव धरती की संतान हैं, जो  प्राकृतिक समृद्धि का हिस्सा हैं और पृथ्वी के संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन वन्यजीवों का संरक्षण करना हमारी जिम्मेदारी है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 20 दिसंबर 2013 को 68वें अधिवेशन में वन्यजीवों की सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने एवं वनस्पति की लुप्तप्राय प्रजाति के प्रति जागरुकता बढ़ाने के लिए 3 मार्च को हर साल7 विश्व वन्यजीव दिवस मनाने की घोषणा की थी। 2014 को पहली बार विश्व वन्यजीव दिवस मनाया गया था। जबकि 1872 में वन्य जीवों को विलुप्त होने से रोकने के लिए वाइल्ड एलीफेंट प्रिजर्वेशन एक्ट पारित हो चुका था। 
दिवस का महत्व बढ़ाने हर वर्ष थीम घोषित की जाती है। इस वर्ष “कनेक्टिंग पीपल एंड प्लैनेट : एक्सप्लोरिंग डिजिटल इनोवेशन इन वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन“ थीम है। जो डिजिटल नवाचार पर केंद्रित है। यह इस बात पर जोर देती है कि डिजिटल संरक्षण प्रौद्योगिकियां और सेवाएं वन्यजीव संरक्षण, टिकाऊ और कानूनी वन्यजीव व्यापार और मानव-वन्यजीव सह-अस्तित्व को कैसे चला सकती हैं? क्योंकि तेजी से जुड़ती दुनिया पारिस्थितिक तंत्र और समुदायों पर डिजिटल हस्तक्षेप के प्रभाव को पहचानती है। पीढ़ीगत आदान-प्रदान और युवा सशक्तिकरण के लिए एक मंच है। जो कला, प्रस्तुतियों और चर्चाओं के माध्यम से, यह स्थायी डिजिटल वन्यजीव संरक्षण के अवसरों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही मौजूदा डिजिटल नवाचारों की खोज को प्रोत्साहित करता है। ताकि सोशल मीडिया के जरिए व्यापक स्तर पर इसके संरक्षण को महत्व दिया जा सके। 
भारतीय वन्यजीव संस्थान के राष्ट्रीय वन्यजीव डाटाबेस के असनुसार भारत में वर्तमान में एक लाख 17 हजार 230.76 वर्ग किमी के आवरण में 528 वन्य जीव अभ्यारण्य हैं। जो भारत के भौगोलिक क्षेत्र का 3.57 प्रतिशत है। 16 हजार 829 वर्गकिमी क्षेत्र कवर करते हुए अन्य 218 वन्यजीव अभ्यारण्य संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क रिपोर्ट प्रस्तावित है। भारत में 106 राष्ट्रीय उद्यान हैं। देश के एक लाख 64 हजार 74 वर्ग किमी भौगोलिक क्षेत्र में फैले हुए चार कम्युनिटी रिजर्व, 56 संरक्षण रिजर्व, 528 वन्यजीव अभ्यारण्यों एवं 106 राष्ट्रीय पार्क सहित कुल 694 संरक्षित क्षेत्र हैं, जो कुल क्षेत्र का लगभग 4.99 प्रतिशत है।
मध्य प्रदेश में दो हजार 345 राज्य क्षेत्र वर्ग किमी में 25 वन्यजीव अभ्यारण्य हैं। बाघ, चीता और तेंदुओं का मध्य प्रदेश पहला घर है, जहां देश के सर्वाधिक तीन हजार 907 तेंदुए हैं। चीता और टाइगर स्टेट का दर्जा पहले से ही प्राप्त है। तेंदुओं में भी सिरमौर बन गया है। ऐसे में मध्य प्रदेश (एमपी) चीता, तेंदुओं और बाघ के मामले में पूरे देश में सरताज है।
विश्व वन्यजीव दिवस हमें याद दिलाता है कि हम सभी को जिम्मेदार बनना चाहिए और हमें वन्यजीवों के संरक्षण में सक्रिय योगदान देना चाहिए। यह दिन हमें प्रेरित करता है कि हम सभी मिलकर प्राकृतिक संतुलन को सुरक्षित रखें और वन्यजीवों के लिए एक सुरक्षित और स्वस्थ माहौल बनाएं। क्योंकि मौजूदा परिवेश में दुनियाभर में जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की अनेक प्रजातियां धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही हैं। भारत में इस समय 900 से भी ज्यादा जीवों की प्रजातियां खतरे में हैं। समय रहते यदि नहीं चेते तो स्थिति और भी खतरनाक हो सकती है। कारण स्पष्ट है कि हर जगह लोग भोजन से लेकर ईंधन, दवाएँ, आवास और कपड़े तक अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए वन्य जीवों और जैव विविधता-आधारित संसाधनों पर निर्भर हैं। प्रकृति हमें और हमारे ग्रह को जो लाभ और सुंदरता प्रदान करती है उसका आनंद लेने के लिए, लोग यह सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं कि पारिस्थितिकी तंत्र फलने-फूलने में सक्षम हो और पौधों और जानवरों की प्रजातियां भविष्य की पीढ़ियों के लिए अस्तित्व में रहने में सक्षम हों। यह दिवस हमें वन्यजीव अपराध और मानव-प्रेरित प्रजातियों की कमी के खिलाफ लड़ाई को तेज करने की तत्काल आवश्यकता की याद दिलाता है, जिसका व्यापक आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव पड़ता है। वन्यजीव जलवायु संतुलित बनाए रखने में मदद करते हैं। ये मानसून को नियमित रखने तथा प्राकृतिक संसाधनों की पुनःप्राप्ति में सहयोग करते हैं। 
पृथ्वी की जैव विविधता को बनाए रखने के लिए वनस्पतियां और जीव-जंतु बहुत जरूरी हैं। लेकिन पर्यावरण के असंतुलन और तरह-तरह के प्रयोगों से बहुत से जीव और वनस्पतियों का अस्तित्व खतरे में है। वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लगभग आठ हजार से अधिक प्रजातियाँ लुप्तप्राय हैं और 30 हजार से अधिक प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं। अनुमान लगाया गया है कि लगभग एक लाख प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं। भारत में सभी दर्ज प्रजातियों का 7-8 प्रतिशत हिस्सा है, जिसमें पौधों की 45 हजार से अधिक प्रजातियाँ और जानवरों की 91 हजार प्रजातियाँ शामिल हैं। भारत दुनिया के सबसे जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है, जहाँ तीन जैव विविधता हॉटस्पॉट हैं- पश्चिमी घाट, पूर्वी हिमालय और इंडो-बर्मा हॉटस्पॉट। देश में 7 प्राकृतिक विश्व धरोहर स्थल, 11 बायोस्फीयर रिज़र्व और 49 रामसर स्थल हैं।
भारत में अनेक वन्यजीव संरक्षण पार्क और अभ्यारण्य हैं, जिनमें उत्तराखंड में जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क, राजस्थान में रणथंभौर नेशनल पार्क, गुजरात में गिर नेशनल पार्क, कर्नाटक में बन्नेरघट्टा बायोलॉजिकल पार्क, केरल में पेरियार नेशनल पार्क, लद्दाख में हेमिस नेशनल पार्क, हिमाचल प्रदेश में ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क और मध्य प्रदेश में कूनो नेशनल पार्क आदि शामिल हैं। 
प्रजातियों के विलुप्त होने में मानव गतिविधियों के साथ-साथ मुख्य कारकों में शामिल हैं- शहरीकरण के कारण निवास स्थान का नुकसान, अतिशोषण, प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवास से स्थानांतरित करना, वैश्विक प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन आदि। इसलिए जरूरी हो जाता है कि धरती के आभूषण कहे जाने वाले इन वन्य प्राणियों के प्रति हमारा रवैया सकारात्मक हो और उनके संरक्षण के लिए हम सभी प्रतिबद्ध हों।

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