*मजदूर देश के नव निर्माण में बहुमूल्य भूमिका निभाता है। राष्ट्र के विकास में उसका महत्ववूर्ण योगदान होता है। समाज, संस्था, देश और उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों की अहम भूमिका होती है। मजदूर के बिना किसी भी औद्योगिक ढांचे को खड़ा करने की कल्पना नहीं की जा सकती। श्रमिकों का समाज में अपना ही एक स्थान है। अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस लाखों मजदूरों के परिश्रम, दृढ़ संकल्प, निश्चय, और निष्ठा का दिवस है। आखिर क्यों पड़ी इस दिवस को मनाने की जरूरत? आइए जानते हैं, अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस का इतिहास, महत्व और आधुनिक दौर में उनका प्रभाव।*
---मजदूर दिवस, मई दिवस या अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस मजदूरों के नाम समर्पित है। मजदूर और श्रमिकों को सम्मान देने के लिए 1 मई को भारत सहित पूरी दुनिया में मनाया जाता है। श्रमिकों के सम्मान के साथ ही मजदूरों के अधिकारों के लिए आवाज उठाने के उद्देश्य से भी इस दिन को मनाते हैं, ताकि मजदूरों की स्थिति समाज में मजबूत हो सके। हर कार्य क्षेत्र मजदूरों के परिश्रम पर निर्भर करता है। मजदूर किसी भी क्षेत्र विशेष को बढ़ावा देने के लिए श्रम करते हैं। मई दिवस दुनिया भर के श्रमिकों के लिए एक त्योहार है और यह उनका सम्मान करता है।
1886 में अमेरिका में श्रमिकों ने 8 घंटे के कार्य दिवस की मांग को लेकर आंदोलन का शंखनाद किया। शिकागो के हेमार्केट स्क्वायर में विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने गोली बरसाईं। जिसमें कई श्रमिकों की जान गईं और सैकड़ों जख्मी हो गए। 1889 में पेरिस में इंटरनेशनल सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस में 1 मई को मजदूरों के बलिदान में समर्पित करने का फैसला किया गया। जो दुनिया भर में श्रमिकों के संघर्षों और उपलब्धियों को पहचानने का दिन है। इस तरह धीरे-धीरे पूरी दुनिया में 1 मई को मजदूर दिवस या कामगार दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हुई। श्रम अधिकारों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना का स्मरण दिवस है।
भारत में यह दिन 1923 में अस्तित्व से आया। हालांकि मजदूर आंदोलन का आगाज 136 साल पहले हो चुका था। अमेरिका में 1 मई 1889 को लागू होने के 34 साल बाद लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान के बेनर तले 1 मई 1923 को पहली बार चेन्नई में मजदूर दिवस मनाया गया। कॉमरेड सिंगारवेलर ने समारोह का नेतृत्व किया कई संगठन और सोशल पार्टी ने इस फैसले का समर्थन किया।
अधिकांश देश 1 मई को मई दिवस के रूप में मनाते हैं। यूके और आयरलैंड में मई के पहले सोमवार को बैंक अवकाश होता है। इस छुट्टी को बीसवीं सदी में सोवियत संघ द्वारा आधिकारिक तौर पर स्वीकृत किया गया था। इसे कुछ कम्युनिस्ट देशों में श्रमिक दिवस की अंतरराष्ट्रीय एकजुटता के रूप में भी जाना जाता है। कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और नीदरलैंड सभी अलग-अलग दिनों में मजदूर दिवस मनाते हैं।
मजदूर दिवस न केवल श्रमिक वर्ग के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए बहुत महत्व रखता है। क्योंकि यह दिन दुनिया भर में अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण, रखरखाव और संचालन में श्रमिकों द्वारा निभाई जाने वाली महत्वपूर्ण भूमिका की वैश्विक मान्यता के रूप में कार्य करता है।
उद्योगों और क्षेत्रों में श्रमिकों की उपलब्धियों, कौशल और कर्मठता के जश्न का प्रतीक है। उनका समर्पण, कड़ी मेहनत और नवाचार समाज के पहियों को घुमाते रहते हैं। श्रमिकों के अधिकारों और बेहतर कामकाजी परिस्थितियों के लिए चल रहे संघर्ष को दर्शाता है। यह उचित वेतन, सुरक्षित कार्य वातावरण, सामाजिक सुरक्षा और शोषण से सुरक्षा जैसे मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाता है। श्रमिकों के लिए एक अधिक न्यायसंगत दुनिया बनाने का दबाव डालता है। विभिन्न पृष्ठभूमियों, उद्योगों और देशों के श्रमिकों को एक-दूसरे के साथ एकजुटता से खड़े होने का साहस देता है। यही एकता की भावना श्रमिकों को सामूहिक रूप से अपनी चिंताओं को व्यक्त करने, अनुभव साझा करने और सकारात्मक बदलाव की दिशा में काम करने का अधिकार देती है।
भारत में श्रम का तात्पर्य भारत की अर्थव्यवस्था में रोजगार से है। 2020 में भारत में 476.67 मिलियन श्रमिक थे। जो चीन के बाद सबसे ज्यादा हैं। जिसमें कृषि उद्योग में 41.19 प्रतिशत, उद्योग क्षेत्र में 26.18 प्रतिशत और सेवा क्षेत्र में कुल श्रम शक्ति 32.33 प्रतिशत है। जबकि 7.26 करोड़ की आबादी वाले मध्य प्रदेश में करीब पोने दो करोड़ मजदूर हैं। देश में श्रमिकों अकुशल, अर्ध कुशल और कुशल की तीन श्रेणियां हैं। उसी आधार पर उनके वेतन का निर्धारण होता है।
दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि आज भी लाखों लोगों से बंधुआ मजदूरी कराई जाती है। जो बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976 और संविधान के अनुच्छेद 23 का पूर्णतः उल्लंघन है। मजदूरी में लैंगिक भेदभाव आम बात है। फैक्ट्रियों में आज भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन नहीं दिया जाता है।
यह भी विडंबना है कि छोटे-छोटे गरीब बच्चे स्कूल छोड़कर बाल-श्रम को मजबूर हैं। बालश्रम बच्चों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित करता है। जबकि देश में बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम लागू है। श्रमिक को 8 घंटे से ज्यादा काम नहीं करना चाहिए। काम के घंटे बढ़ाए जा सकते हैं, लेकिन नियमित वेतन के अलावा अतिरिक्त पारिश्रमिक का भुगतान हो।
हालांकि मध्यप्रदेश सरकार ने श्रमिकों के हित में बड़ा कदम उठाया है। श्रम मंत्री प्रहलाद पटेल ने बड़ी राहत देते हुए मजदूरी में बढ़ोतरी की है। अब कुशल श्रमिकों का न्यूनतम वेतन 12294 रुपए, उच्च कुशल का 13919 रुपए होगा। इस लिहाज से अकुशल श्रमिकों के वेतन में 1975 रुपए, अर्द्धकुशल श्रमिकों के वेतन में 2114 रुपए, कुशल श्रमिकों के वेतन में 2459 रुपए और उच्च कुशल श्रमिकों के वेतन में 2784 रुपए प्रति माह की बढ़ोतरी हुई है।। अकुशल मजदूरों को अब हर महीने 11,450 रुपए, अर्द्धकुशल मजदूरों को 12,446 और खेतिहर मजदूरों को 9,160 रुपए मजदूरी मिलेगी। अंश कालिक मजदूरी करने वालों को संबल योजना से जोड़ा जाएगा। असंगठित मजूदरों की मजदूरी में 25 फीसदी की बढ़ोतरी की है। 10 साल बाद हुई यह बढ़ोतरी अप्रैल से पूरे प्रदेश में लागू हो गई।
साथ ही सरकार ने ऐलान किया है कि ई-स्कूटर खरीदने पर मजदूरों को 40 हजार रुपए की सब्सिडी दी जाएगी। श्रम मंत्री की यह पहल प्रशंसनीय है। लेकिन मजदूरों के हितों में और भी ठोस कदम उठाने की जरूरत है। देखा जाए तो आज भी कई क्षेत्रों में मजदूरों का शोषण आम बात है। इसे दृष्टिगत रखते हुए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के तहत बने पैरालीगल वॉलेंटियर ने एक हेल्प लाइन नंबर जारी किया है कि यदि मजदूरी करने बाद किसी मजदूर को कोई भुगतान करने से इंकार करता है तो वह लेबर हेल्पलाइन नंबर 1800-1800-999 पर शिकायत कर सकता है।
मजदूर दिवस पर हम सभी को चाहिए कि समाज व राष्ट्र के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले श्रमिकों के हितों के लिए सकारात्मक पहल कर उनके विकास में अपना योगदान हैं। चंद पंक्तियों के साथ मजदूर भाई-बहनों को मई दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
मजदूर देश का मजबूत खंब है,न होता इसमें कोई दंभ है।

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