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मजिस्ट्रेट - पजामी और कुर्ता उतार, मुझे तेरी चोटें देखनी हैं, रेप पीड़िता - मैडम को दिखाऊंगी, आपके सामने नहीं खोलूं

मंगलवार, 2 अप्रैल 2024

/ by Vipin Shukla Mama
* 19 मार्च को गैंगरेप, 27 को मेडिकल और 30 को बयान
* मेडिकल रिपोर्ट के साथ महिला आईओ बाहर मौजूद थीं, मजिस्ट्रेट को चोटें अकेले में ही क्यों देखनी थी?
राजस्थान। हिंडौन में एक दुष्कर्म पीड़िता ने एक दिन पहले मजिस्ट्रेट पर 164 के बयान के दौरान छेड़छाड़ का आरोप लगाया है।  पीड़िता का आरोप है कि बयान के दौरान मजिस्ट्रेट ने उससे कपड़े उतारने को कहा। बाद में उसने हिंडौन पुलिस उपाधीक्षक कार्यालय जाकर रिपोर्ट दर्ज कराई। मामले पर सोमवार को पूर्व जजों व कानूनविदों ने निष्पक्ष जांच हाई कोर्ट प्रशासन से करवाने की बात कही है। हालांकि पीड़िता ने आवेदन में मजिस्ट्रेट का नाम नहीं लिखा है। ऐसे में पुलिस का कहना है कि पीड़िता से बात करने के बाद संबंधित जज से पूछताछ होगी।
वेलफेयर सोसायटी ऑफ फॉरमर जजेज राजस्थान के अध्यक्ष डॉ. पवन कुमार जैन का कहना है कि हाईकोर्ट चाहे तो स्वप्रेरित प्रसंज्ञान लेकर भी इस मामले की जांच अपने स्तर पर करवा सकता है। राज्य महिला आयोग की पूर्व सदस्य व बीसीआर की पूर्व सदस्य सुनीता सत्यार्थी का कहना है कि हाईकोर्ट प्रशासन को तुरंत ही इसकी निष्पक्ष जांच करनी चाहिए और तत्काल ही मजिस्ट्रेट को जांच पूरी होने तक निलंबित किया जाना चाहिए। पीड़िता को भी सुरक्षा मुहैया कराई जानी चाहिए। बीसीआर के वाइस चेयरमैन कपिल प्रकाश माथुर का कहना है कि यह मामला अत्यधिक संवेदनशील है जिसमें खुद न्यायपालिका ही कटघरे में आ गई है। ऐसे में हाई कोर्ट प्रशासन की दोहरी जिम्मेदारी है कि वह ना केवल अपने न्यायिक अफसर के खिलाफ जांच करे बल्कि पीड़िता को भी न्याय दिलवाए। बिना हाईकोर्ट की मंजूरी लिए न्यायिक अफसर के खिलाफ नहीं हो सकती एफआईआरः पूर्व न्यायिक अधिकारी एके जैन का कहना है कि हाईकोर्ट के सीजे की मंजूरी लिए बिना न्यायिक अफसर के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं हो सकती। सुप्रीम कोर्ट भी यूपी ज्यूडिशियल ऑफिसर्स एसोसिएशन बनाम केन्द्र सरकार व अन्य मामले में दिए फैसले में कह चुका है कि न्यायिक अफसर के खिलाफ संबंधित हाईकोर्ट के सीजे की मंजूरी लिए बिना क्रिमिनल केस दर्ज नहीं हो सकता। हाईकोर्ट पहले न्यायिक अधिकारी के खिलाफ मामले की जांच करता है और उसके बाद ही मामले में उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मंजूरी देता है। 
यह शर्मनाक, न्यायपालिका तो पीड़ित की रक्षक है
▶ यदि ऐसा हुआ है तो बेहद शर्मनाक है। ऐसा नहीं होना चाहिए था। न्यायपालिका तो पीड़ित की रक्षक है, उसे उसी स्वरूप में रहना चाहिए।
- एसएन झा, राजस्थान हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस
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हाई कोर्ट विभागीय कार्रवाई करे, निलंबन हो
• हाई कोर्ट प्रशासन इसे गंभीरता से ले, अपने स्तर पर जांच कराए। जांच होने तक संबंधित आरोपी पर विभागीय कार्रवाई करे। उसे निलंबित करे।
- पानाचंद जैन, राजस्थान हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस












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