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धमाका बड़ी खबर: कालामढ़ भूमि घोटाला, 18 में से 17 आरोपी पर 17 मई को होंंगे आरोप तय, एक अधिकारी उन्मोचित, पटवारी, आरआई, सचिव से लेकर कई तहसीलदार तक नपे

रविवार, 12 मई 2024

/ by Vipin Shukla Mama
* एक तहसीलदार को मिली राहत, प्रकरण से उन्मोचन का आदेश 
शिवपुरी। जिले के पोहरी सब डिवीजन अंतर्गत बैराड़ के कालामढ़ गांव की वेशकीमती शासकीय चरनोई की सर्वे क्रमांक 570 व 571 की भूमि को राजस्व अभिलेख में संगठित हेराफेरी कर भूमि की नोईयत परिवर्तित कर इस भूमि को पट्टे पर वितरित करने एवं भूमि का निजी हाथों में विक्रय कराए जाने के आपराधिक षड्यंत्र में ईओडब्लू ग्वालियर द्वारा राजस्व अधिकारियों सहित 18 लोगों के विरुद्ध विभिन्न आपराधिक धाराओं में चालान प्रस्तुत किया था। ईओडब्लू द्वारा पेश चालान पर सुनवाई करते हुए विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम शिवपुरी श्री विवेक शर्मा ने 18 में से 17 आरोपियों के विरुद्ध आरोप निर्धारण हेतु 17 मई की तिथि तय की है। कोर्ट ने इसी मामले मेेंं ईओडब्ल्यू द्वारा आरोपी बनाए तत्कालीन पोहरी तहसीलदार साहिर खान को प्रकरण की सुनवाई के प्रक्रम राहत दी है। उन्हें दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 227 के आवेदन पर उपलब्ध अभिलेख व सामने आए अन्य तथ्यों पर विचारण उपरांत भ्रष्टाचार के आरोपों से उन्मोचित कर दिया है। तहसीलदार साहिर खान की ओर से पैरवी एडव्होकेट अंकुर चतुर्वेदी, विमल वर्मा तथा उनके सहयोगी एरिस खान, दीक्षा रघुवंशी, श्रेय शर्मा तथा दीपम भार्गव ने की।
-यह था बैराड़ का कालामढ़ भूमि घोटाला- 
अभियोजन के अनुसार बैराड़ निवासी लक्ष्मण व्यास ने ईओडब्ल्यू ग्वालियर को 3 मार्च 2009 को ग्राम कालामढ़ बैराड़ तहसील पोहरी के पटवारी हल्का नंबर 19 की भूमि सर्वे नंबर 571 के अवैध रूप से विक्रय करने के संबंध में शिकायत करते हुए यह बताया था कि बैराड़ कालामढ़ में चरनोई की भूमि पर राजस्व अधिकारियों ने अवैध रूप दस्तावेजों में हेराफेरी कर स्थानीय सरपंच लक्ष्मण रावत और उनके परिवार जनों पर लगाए गए थे। आरोप था कि बैराड़ के कालामढ में विक्रय से वर्जित सर्वे नम्बर 571 की चरनोई भूमि को आबादी घोषित कराकर सरपंच लक्ष्मण रावत ने अपने एवं परिवार के साथ सदस्यों के नाम पट्टे करा लिए और पंचायत से प्रस्ताव कर कर 10 क्रेताओं को इस भूमि का कर दिया। उस समय विक्रय की गई इस भूमि का मूल्य 66 लाख रुपए था। 
ईओडब्ल्यू ने प्रकरण दर्ज कर मामले की जांच शुरु की और तत्कालीन कलेक्टर से इस संबंध में प्रतिवेदन मांगा। कलेक्टर द्वारा कराई गई जांच में सर्वे नम्बर 570 पर भी बड़ी गड़बड़ी सामने आई। उपलब्ध जांच प्रतिवेदन तथा अन्य अभिलेखों के आधार पर ईओडब्लू ने जांच की तो जो वस्तु स्थिति सामने आई उसके तहत बद्रीप्रसाद ओझा, लक्ष्मण सिंह रावत, रामबाबू सिण्डोस्कर तत्कालीन तहसीलदार पोहरी, शैलेंद्र राव तत्कालीन अतिरिक्त तहसीलदार साहिर खान, तत्कालीन तहसीलदार पोहरी, हाकिम सिंह तत्कालीन नायब तहसीलदार घनश्याम शर्मा तत्कालीन पटवारी, रामचरण पावक तत्कालीन सचिव ग्राम पंचायत कलामढ़ योगेंद्र बाबू शुक्ला तत्कालीन राजस्व निरीक्षक, जयकरण सिंह गुर्जर सेवा निवृत नायब तहसीलदार, जगदीश प्रसाद श्रीवास्तव सेवा निवृत राजस्व निरीक्षक, प्रेम नारायण श्रीवास्तव तत्कालीन पटवारी, मालती पत्नी लक्ष्मण रावत निवासी कालामढ़, श्रीमती बिमला पत्नी स्वर्गीय राजकुमार ओझा, नंदकिशोर पुत्र बद्री प्रसाद ओझा, रामकुमार पुत्र बद्री प्रसाद, अनिल कुमार पुत्र बद्री प्रसाद ओझा श्रीमती गायत्री पत्नी ग्यासी राम ओझा के विरुद्ध धारा 420, 409, 467, 471 तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1) क तथा धारा 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत प्रकरण दर्ज कर चालान पेश किया। 
इस मामले में पटवारी, सचिव, सरपंच से लेकर तमाम नायब तहसीलदार और तहसीदारों के खिलाफ न्यायालय 17 मई को आरोप निर्धारित करेगा जबकि तहसीलदार साहिर खान को आरोपों से उन्मोचित कर दिया है। उनके अभिभाषक अंकुर चतुर्वेदी ने तर्क रखा कि तत्कालीन तहसीलदार साहिर खान ने न्यायिक कार्य के दौरान आदेश पारित किया है ऐसे में उनके विरुद्ध अभियोजन को धारा 3 न्यायाधीश संरक्षण अधिनियम 1985 के अंतर्गत अभियोजन की स्वीकृति लेनी थी जो नहीं ली गई। ईओडब्लू ने सामान्य कर्मचारी की तरह साधारण रुप से धारा 19 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत ही स्वीकृति प्राप्त की है। ज्ञातव्य है कि साहिर खान द्वारा 2 नवम्बर 2010 को पट्टा धारक बद्री प्रसाद आदि का नाम व्यवहार वाद प्रकरण में पारित निर्णय एवं डिक्री के आधार पर अभिलेख में दर्ज करने का आदेश दिया था। उन पर यह भी आक्षेप था कि उन्होने विक्रय से वर्जित भूमि के विक्र य की अनुमति दी थी। जिसे भी न्यायालय ने इस आधार पर अमान्य कर दिया गया कि तत्तसमय कृषि भूमि के पट्टेदार 10 साल बाद भूमि का विक्रय कर सकते थे, उसमें अनुमति आवश्यक नहीं थी। जबकि वर्ष 2014 में ऐसा करने से पूर्व कलेक्टर की अनुमति आवश्यक की गई है। न्यायाधीश विवेक शर्मा ने साहिर खान को उन्मोचित करने के सम्बंध में पारित निर्णय में लेख किया कि केवल प्रावधान के निर्धारण में त्रुटि के आधार पर आपराधिक मनस्थिति अवधारित नहीं की जा सकती।













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