Banganga Kund Shivpuri शिवपुरी। महाभारत काल की पांडवों के अज्ञातवास से जुड़ी रोचक कहानियां देश के कई हिस्सों में सुनने को मिल जाती हैं। कई कथाओं के साथ ऐतिहासिक प्रमाण भी मिलते हैं। ऐसा ही एक स्थान शिवपुरी का बाणगंगा कुंड है। इसके बारे में कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने शिवपुरी के घने जंगलों में भी कुछ समय काटा। एक दिन जब कुंती को प्यास लगी तो उन्होंने बेटे अर्जुन से पानी लाने को कहा। आसपास पानी का कोई स्रोत नहीं देख अर्जुन ने जमीन पर तीर मारा, वहां से पानी की धार बह निकली और इस पानी से कुंती ने प्यास बुझाई। यह जगह पांडवों को इतनी पसंद आई कि वे यहां रुके और यहां 52 कुंडों का निर्माण भी कराया। फिर इस स्थान का नाम बाणगंगा रखा गया। शिवपुरी आने वाले पर्यटक इन्हें देखने को लालायित रहते हैं। बाणगंगा से लेकर सिद्धेश्वर इलाके तक कुल 52 कुंड थे। इन्हें पत्थरों से बनाया गया था। सभी 10 से 15 फीट तक गहरे थे और बारिश का पानी इनमें सहेजा जा सकता था।
भीम, नकुल, सहदेव सहित सास-बहू के नाम के कुंड
बाणगंगा पर भीम, नकुल, सहदेव सहित सास-बहू के नाम के कुंड हैं। भीम कुंड सबसे बड़ा है। सास- बहू का कुंड संकरा और गहरा है।
राम-जानकी और राधा कृष्ण का मंदिर बाणगंगा में अंदर के कुंड के ऊपर राम-जानकी और राधा-कृष्ण की प्रतिमाएं स्थापित हैं और यहां मंदिर बना हुआ है। मंदिर के चारों ओर अन्य मंदिर हैं। इन मंदिरों में शिवलिंग व हनुमानजी की मूर्ति स्थापित होने से पूरे क्षेत्र का अपना धार्मिक महत्व भी हो गया है।
जल खोजी तकनीक होती थी तीरों में इतिहासकार और लेखक प्रमोद भार्गव का कहना है कि महाभारत काल में यह उल्लेख मिलता है कि उस दौरान जल खोजी तीर होते थे जिन्हें चलाने पर तीर वहीं गिरता था जहां पानी होता था और कम मात्रा में पानी भी निकल आता था। इसके बाद वहां बड़े गड्ढे या कुंडों का निर्माण कर उस पानी को सहेज लिया जाता था।
शिलालेख भी मौजूद
कुंडों के समीप ही एक बड़े पत्थर पर शिलालेख भी है। इतिहासकार अरुण अपेक्षित बताते हैं कि बाणगंगा के कुंड महाभारतकालीन इतिहास को अपने आप में समेटे हुए हैं। शिलालेख ब्राह्मी लिपि में है। इसे पढ़ा नहीं जा सका है लेकिन इससे यह पुष्टि होती कि यह स्थान महाभारत काल या उससे भी पहले का है।
खास पत्थरों की वजह से रहता है कुंडों में 12 महीने पानी
बाणगंगा इलाके में पुरतीला पत्थर हैं। यह पत्थर बारिश के पानी को सहेज लेता है। ये कुंड सदियों से यहां बने हुए हैं, इसलिए उनमें पानी रहता है और वहां के पत्थरों में भी पानी रहता है इसलिए ये हर मौसम में पानी से लबालब रहते हैं। साल के 12 महीने इन कुंडों से पानी मिलता है। इनका पानी पंप से नहीं लिया जाता या अन्य उपयोग में नहीं आता इसलिए ये हमेशा भरे रहते हैं।
समय के साथ लुप्त हुए कुंड, रहने लगी गंदगी
समय बदला धीरे धीरे कुंड लुप्त होते चले गए। आज नाम मात्र के ही कुंड शेष रह गए हैं। उनमें भी यहां आने वाले लोग कचरा, भगवान की कांच वाली तस्वीर, फूल, माला प्रसाद्दी आदि कुंडों में फेंककर उन्हें गंदा करते हैं। इस तरह इतिहास की धरोहर नष्ट हो रही हैं। 40 साल से हर साल देखरेख में जुटी धन्ती देवी
बीते 40 साल से इन कुंडों की हर साल देखरेख व्यवसाई हरिओम राठौर की माता जी धंती देवी राठौर करती आ रही ही। कुछ सालों से कुंडों में अधिक गंदगी रहती हैं। जिसके चलते वे अपने साधन और धन से कुंडों को साफ करवाती हैं। लेकिन कहते हैं की नेक काज में हाथ बटाने वाले मिल ही जाते हैं सो इस साल उनके साथ शक्तिशाली महिला संगठन के जिला आयोजक रवि गोयल, एमपीईबी के एई बीसी अग्रवाल, नपा सीएमओ केएस सगर सहयोग कर रहे हैं।(सुनिए क्या कहती हैं मातृशक्ति धंती देवी राठौर और उनके बेटे हरिओम। )

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