एस्ट्राजेनेका के फॉर्मूले से भारत में कोवीशील्ड बनी है। कोविशील्ड वैक्सीन को लेकर एस्ट्राजेनेका ने कहा है कि इससे थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (TTS) की समस्या हो सकती है।
फिर भी कोविशील्ड वैक्सिनेशन वालों को डरना नहीं है क्योंकि कोविड वैक्सीन को मॉनिटर करने वाली ऐप Cowin की डेटा के अनुसार AEFI के मामले 0.007% हैं. क्योंकि किसी भी टीके के AEFI यानी After Events Following Immunization की मॉनिटरिंग लगातार की जाती है। कोई दिक्कत आती है तो या तो टीके के तुरंत बाद दिखती है या फिर महीने से डेढ़ महीने में असर दिखना शुरू हो जाता है किसी भी साइड इफ़ेक्ट का इतना लंबा असर नहीं होता है लिहाज़ा अब डरने की बात नहीं है। बाक़ी रिसर्च लगातार चल रही हैं।
मेरा ऐसा मानना है कोई भी शासक अपनी प्रजा को कभी ख़तरे में नहीं डालना चाहता.. उस वक़्त की जो परिस्थिति थी उसमें ये एक अच्छा ऑप्शन था इसीलिए सरकार ने चुना.. तारीफ़ इस बात की करना चाहिए कि हमने नियत समय में पूरे देश को वैक्सीन लगा डाली थी। इतनी बड़ी जनसंख्या को इतने कम समय में वैक्सिनेट करना बड़ा काम था।
भारत में कोविड के टीके का करीब 2 अरब 21 करोड़ डोजेज लोगों को लगाए गए हैं. इन डोजेज में 1 अरब 70 करोड़ डोजेज कॉविशील्ड के लगे हैं।भारत में 93 प्रतिशत लोगों को कोरोना का टीका लगाया गया है.
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, कंपनी ने कहा है कि अब वैक्सीन का निर्माण और सप्लाई नहीं की जा रही है। एस्ट्राजेनेका ने फरवरी में ब्रिटिश हाईकोर्ट में माना था कि उनकी वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं।
कंपनी दावा किया है कि वैक्सीन को बंद करने का फैसला साइड इफेक्ट्स की वजह से नहीं लिया गया है। ये डिसीजन व्यावसायिक कारणों से लिया गया है. अब मार्केट में कई एडवांस्ड वैक्सीन उपलब्ध हैं जो कई तरह के वेरिएंट से लड़ सकती है.
फिलहाल कंपनी की ओर से वैक्सीन की मैन्युफैक्चरिंग और सप्लाई को बंद कर दिया गया है।
पुनः याद रखिए कि वैक्सीन के साइड इफ़ेक्ट्स सिर्फ़ 0.007 % हैं जो कि भारत के लिए उतने मायने नहीं रखते..
वैसे भी हम भारतीयों की इम्युनिटी विदेशियों से ज़्यादा होती है। हम सुलभ शौचालय के सामने लगे चाट के ठेले पे फुल मिर्च मसाले की खटाई वाली टिकिया पीने वाले मट्ठर लोग हैं.. 😍
अतः तनाव मुक्त जीवन जियें, व्यायाम करें और और स्वस्थ रहें.. हमें कुछ नहीं होगा। इसके बाद भी जो होगा देखेंगे..

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