* "ज्योतिरादित्य एवं प्रियदर्शनी राजे- राजघराने की परंपरा को बखूबी निभाकर जनता को अपना भगवान मान शिद्धत के साथ पूरा कर रहे हैं जनसेवा का संकल्प"
डॉ. केशव पाण्डेय की कलम से*सियासत के खुले आसमान में चमकते हुए सितारे की तरह नजर आने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया देश और दुनिया में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। ज्योतिरादित्य यानी आत्मविश्वास से भरा दमकता और चमकता हुआ चेहरा जिसे देख लोगों के चेहरे के भाव बदल जाते हैं और उनके दुःख-दर्द मिट जाते हैं। उन्हें देख लोगों को उनमें अपना हमदर्द नजर आता है। लोग उन्हें विकास का मसीहा कहते हैं, कोई सच्चा जन सेवक और कोई असली जननायक तो वहीं कई हजारों युवा उन्हें यूथ आईकॉन मानते हैं।
आम और खास उन्हें अनेक उपमाओं से नवाजते हैं लेकिन वे राजनीति में जनसेवा के प्रतीक हैं। जो लोगों के दर्द को समझते हैं और उनके मर्म को जान, परोपकार का भाव रख उनकी हर संभव मदद भी करते हैं। यही वजह है कि राजनीतिक जगत में वे अपनी इसी शैली के लिए विशिष्ट पहचान रखते हैं।
“कर्मण्येवाधिकारस्ते माफलेषु कादचन“- गीता के इस शाश्वत आर्ष वाक्य को अपनी दादी की तरह जीवन में आत्मसात करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सिंद्धातों के संघर्ष में रहकर त्याग को स्वीकार किया और समाज व राष्ट्र के साथ ही मानवीय मूल्यों के लिए अतुल्यनीय योगदान प्रदान किया है।
....त्याग, तपस्या और परोपकार की साक्षात प्रतिमूर्ति कही जाने वालीं राजमाता विजयराजे सिंधिया के नाती ज्योतिरादित्य सिंधिया में अपनी अम्मा महाराज की राजनीतिक झलक देखने को मिलती है। बात स्वाभिमान और सम्मान की हो तो फिर वे कहां पीछे हटने वाले....?
ज्योतिरादित्य सिंधिया भी समय-समय पर अपनी अम्मा महाराज का स्मरण कर भावुक हो जाते हैं। वे हमेशा कहते हैं कि राजमाता “वसुधैव कुटुम्बकम“ की जीवंत प्रतिमूर्ति थीं। लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया आधुनिक परिवेश में अपने राजघराने की जनसेवा की परंपरा का एक कदम आगे बढ़ते हुए निर्वहन कर रहे हैं। उनकी सरलता, सहजता, दयालुता और सहदृयता उन्हें सम्मान की हकदार बना रही है।
इस बात को इस तरह समझते हैं कि “राजमाता माधवी राजे सिंधिया की पुष्पांजलि सभा“ में श्रद्धांजलि अर्पित करने रानी महल पहुंचे 99वर्षीय बुजुर्ग स्वतंत्रता सेनानी गणपत राव नीखरा गर्मी के मौसम में गस खाकर गिर गए। ज्योतिरादित्य ने तत्काल अपनी जगह से खड़े होकर उन्हें उठाया और प्रियदर्शनी राजे ने अपने हाथों से उन्हें औषधी प्रदान की। दोनों ने मिलकर पानी पिलाया और उनकी सेवा कर ढांढस बंधाया। यही नहीं उन्हीं के पास बैठे महाआर्यमन सिंधिया ने बुजुर्ग की छड़ी लेकर उन्हें पकड़कर सहारा दिया। सिंधिया दंपति द्वारा की गई इस सेवा से बुजुर्ग भावुक हो गए और उन्होंने उन्हें अपना आशीर्वाद दिया। यह था सिंधिया राज परिवार की महानता का नजारा। दूसरा दृश्य था, जब विकलांग कल्याण एवं सामाजिक संगठन के अनेक दिव्यांगजन पुष्पांजलि अर्पित कर रहे थे तो स्वयं ज्योतिरादित्य ने खड़े होकर उन्हें संबल दिया और गले लगाकर उनका मान बढ़ाया। जिसे देख हर कोई सिंधिया की सादगी, सरलता और सहदृयता का कायल हो गया। वहां मौजूद सैकड़ों लोग अंचभित और आश्चर्यचकित थे कि राजमहलों में रहने वाले सिंधिया परिवार के लोग इतनी सहजता के साथ किसी की सेवा भी कर सकते हैं। हर कोई सिंधिया परिवार की तारीफ किए नहीं थक रहा था। ठीक इसी तरह शिवपुरी की पोहरी से माधवराव सिंधिया की कृपा से विधायक रहे हरिबल्लभ शुक्ला भी जब श्रद्धांजलि सभा में मोजूद थे और विश्राम के समय एक बजे सिंधिया परिवार उठकर खड़ा होने लगा लेकिन शुक्ला को कुछ असहज देखा तो खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उनको सहारा देकर खड़ा किया। तब भी वहां मोजूद लोग आपस में उनकी सहृदयता की सराहना करते नजर आए।
इसी संदर्भ में इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि “जीजामाता“ ने कुलवाड़ी भूषण श्रीमंत योगी, छत्रपति शिवाजी महाराज को “स्वराज“ की शिक्षा दी थी। वह जन कल्याण और राष्ट्रीय एकीकरण की सोच थी, जो ऊॅंच-नीच, जात-पात, धर्म, लिंग, संप्रदाय आदि पर आधारित भेदभाव से परे थी।
शिवाजी महाराज ने इस सोच, जिसे इतिहासकार “हिंदवी स्वराज“ कहते हैं। इसे आगे बढ़ाने सेना बनाई। जिसमें सिंधिया परिवार का महत्वपूर्ण स्थान था। शिवाजी के सपनों के भारत को वास्तविकता दी “राजश्री पाटिलबुवा महादजी सिंधिया“ ने। जिनके परिवार में जन्म लिया एक महान जनसेवक ने, जिन्हें हम “माधवराव सिंधिया“ के नाम से पुकारते थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन सार्वजनिक सेवा और राष्ट्रीय एकता के लिए समर्पित कर दिया।
माधवराव सिंधिया की विरासत हिंदवी स्वराज्य के महान आदर्शों से प्रेरित थी। उन्हीं की इस विरासत को अब ज्योतिरादित्य सिंधिया बखूबी संभाल रहे हैं और उसे निभा भी रहे हैं।
जनसेवा की परंपरा में अम्मा महाराज ममतामयी राजमाता विजयाराजे सिंधिया को नहीं भूला जा सकता है। उन्होंने जीवन पर्यंत सिद्धांतों के संघर्ष में रहकर त्याग को स्वीकार किया। वे चाहती तो सिद्धांतों से समझौता कर राज नेतृत्व कर सकती थीं लेकिन उन्होंने सम्मान और गौरव से कोई समझौता नहीं किया।
“अभिमान नहीं सम्मान“- ये राजनीति का मूलमंत्र उन्होंने जी करके दिखाया। उनका संपूर्ण जीवन तो पावन सेवा और त्याग का उदाहरण रहा। वे 1957 में पहली बार सदन में पहुंची।
अखंड कर्मयोग और सबको मातृ सुलभ स्नेह के आंचल में समेट कर साथ ले चलने का उनका स्वभाव और संस्कार विरोधियों को भी प्रशंसक बना देता था।
ज्योतिरादित्य एवं उनकी पत्नी व बेटा अब इस परंपरा का जीवंत उदाहरण हैं। राजमहलों में रहने के बावजूद उनके मन में कभी अहंकार का भाव नजर नहीं आता। वे आमजन से सहजता, सरलता, आत्मीयता और अपनेपन के साथ मिलते हैं कि उनकी यह अभिव्यक्ति आम और खास के दिल को जीतने वाली होती है। उनका हंसता-मुस्कराता चेहरा और सबके प्रति दया का भाव उन्हें श्रद्धा और सम्मान का हकदार बनाता है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि उनके समान आसमान सी ऊॅचाई, सागर सी गहराई और उनके व्यक्तित्व की विशालता किसी एक इंसान में उपलब्ध होना संभव नहीं है।
कोई सोच भी नहीं सकता है कि जिसके पास सत्ता का पॉवर है, अकूत संपत्ति है, सामर्थ्य है बावजूद इसके उनकी सबसे बड़ी अमानत है संस्कार, सेवा और अपार स्नेह की सरिता। यही कारण है कि वे मौजूदा परिवेश में महाराज और श्रीमंत की छवि को तोड़ने में लगे हुए हैं।
वे आम आदमी को गले लगाते हैं युवाओं से हाथ मिलाते हैं और बुजुर्गों के सामने सम्मान के साथ झुकते भी हैं। 67 साल यानी सात दशक से सिंधिया परिवार राजनीति के माध्यम से जन सेवा करता आ रहा है। ज्योतिरादित्य तीसरी पीढ़ी के तौर पर इसका निर्वहन कर रहे हैं।
आपको बता दूं कि राजनीति का जीवंत इतिहास बन चुके पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी सार्वजनिक रूप से कहा था कि ज्योतिरादित्य भविष्य की राजनीति के चमकते हुए सितारे हैं। ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि सियासत की देदीप्यमान शख्सियत हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया। जिनके -जीवन का संकल्प जन सेवा के माध्यम से हमेशा कुछ नया कर दिखाने के जज्बे ने उनका राजनीतिक कद तो बड़ा कर ही दिया है साथ ही आमजन के मन में उन्हें सच्चे जनसेवक के तौर पर खड़ा कर दिया है। ऐसे में यह कहना मुनासिब होगा कि आज भी सिंधिया राज परिवार करुणा, दया, प्रेम, सरलता, सहजता और सहदृयता के साथ ही जनसेवा की जीती जागती मिसाल है।

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