शिवपुरी। आज सुबह वृद्ध आश्रम शिवपुरी के इस दृश्य ने मन विचलित कर दिया। यहां अपना परिवार होने के बावजूद निराश्रित भवन में दिन काट रहे बुजुर्ग की अर्थी उठ रही थी। इस अवसर पर उसके परिवार के कुछ लोग लोक लाज के चलते शव को माला पहनाते दिखे, आश्रम से अपने साथी की अंतिम विदाई देने वाले और निराश्रित तो आंखों में आंसू लिए थे मगर परिजन...? काश यही विदाई आश्रम से जीते जी घर के लिए हो रही होती, क्या कहें शायद इसीलिए कहते हैं ये दुनियां दो रंगी है। भगवान इस बुजुर्ग को मोक्ष दे।
किसी ने सही कहा है
ज़िंदगी इक हादसा है और कैसा हादसा

कोई टिप्पणी नहीं
एक टिप्पणी भेजें