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धमाका बड़ी खबर: "मराठा योद्धा की तरह लडे द ग्रेट सिंधिया ने रचा अखंड विजय का इतिहास", "तोड़ डाले खुद ही के विजय रिकॉर्ड", 5 लाख 40 हजार 929 मतों से जीते, बधाई बधाई लाखों दिलों के "महाराज"

मंगलवार, 4 जून 2024

/ by Vipin Shukla Mama
शिवपुरी। युद्ध की बात हो और मराठाओं की बात न हो तो ये ना इंसाफी होगी। आज फिर एक मराठा योद्धा ने ऐतिहासिक विजय का इतिहास लिख डाला। ग्वालियर चंबल अंचल के लाखों लोगों के दिलों पर राज करने वाले ग्वालियर राज घराने के महाराज द ग्रेट श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गुना लोकसभा सीट पर 5 लाख 40 हजार 929 वोटों से विजय हासिल कर अपनी ही विजय के पुराने रिकॉर्ड ध्वस्त कर डाले। वास्तव में एक बेहतरीन, मिलनसार, योग्य, शिक्षित और युवा तुर्क द ग्रेट सिंधिया इस विजय के सही मायने में अधिकारी भी हैं। पिछले चुनाव की बात करें तो उन्होंने सीधे तोर पर चुनाव नहीं लडा था और जिन कार्यकर्ताओं की दम पर चुनाव लडा गया वे सिंधिया के अपराजेय गढ़ को समझने में मात खा गए और ये सोचकर दम नहीं लगाई की उन्हें कौन हरा सकता है। खैर आज विजय के इस मीठे स्वाद को हम खराब करना नहीं चाहते बल्कि कहना चाहते हैं की इस बार का चुनाव द ग्रेट सिंधिया ने एक मराठा, एक लडाका की तरह लडा। पूरे प्रचार के दौरान उन्होंने किसी भी बात को न तो खुद हल्के में लिया और न ही किसी को लेने दिया। यहां तक की विजय को लेकर कोई भी दावे, भविष्यवाणी पर उन्होंने पहले दिन से रोक लगा दी थी और सभी से कहा था की अपने अपने मोर्चे संभालो। 
खुद कमर कसकर निकलते थे मैदान में
पिछले चुनाव में जनता से दूरी बड़ी वजह मानी गई थी। इसलिए सिंधिया ने इस बार पहले दिन से ही जनता से मिलना शुरू किया। समाज, संगठन, ग्रुप जो भी थे सभी से लगातार मुलाकात की। जिसका नतीजा हुआ की उन्हें अपने गढ़ गुना शिवपुरी अशोकनगर सहित पूरे इलाके की एक एक हकीकत पता चलती गई। आपको याद होगा उन्होंने अंचल में गुंडागर्दी और भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकने का माइक से एलान तक कर डाला था ये जनता से मिले फीड बैक का ही नतीजा था।
जनता के दिलों को छुआ, बुजुर्गों से लिया आशीर्वाद
सिंधिया ने इस बार अपने साथ रहने वाले चंद नेताओं को तो काम पर लगाया और खुद मिशन पर निकल पड़े। बच्चों को गोद में बिठाकर प्यार करना, बुजुर्गों का सम्मान करना, कभी कार रोककर बाजार में पहुंचना तो कभी खेल के मैदान में छक्के लगाने से लेकर आदिवासियों के बीच ढोल बजाने तक से सिंधिया पीछे नहीं हटे। जिसका नतीजा उन्हें सिर्फ इस चुनाव में ही नहीं बल्कि आने वाले किसी भी चुनाव में मिला करेगा क्योंकि उन्होंने सैकड़ों, हजारों लोगों तक अपने संबंधों की डोर मजबूत कर ली हैं। 
सारथी बनीं धर्म पत्नी प्रिय दर्शनी सिंधिया और बेटे महाआर्यमन 
पूरे चुनाव प्रचार के दौरान उनकी पत्नी प्रियदर्शनी और बेटे महाआर्यमन सिंधिया ने गांव गांव शहर शहर जाकर लोगों तक अपनी बात रखी। उनके दिलों को छुआ। कभी बाटी खाई और रेसिपी समझी तो कभी कैरम खेलते ये परिवार के सद्स्य नजर आए। जिससे आम जनता के बीच एक आम इंसान के चुनाव लडने की बातें चल निकलीं।
विरोधियों ने जाति बाद के साथ किए षड्यंत्र लेकिन सिंधिया रहे खामोश
चुनाव में साम दाम दण्ड भेद सब चलता हैं सो सामने खड़े 14 प्रत्याशियों ने खूब षड्यंत्र किए, पुराने फोटो ग्रुपों पर डालकर लोगों के बीच सिंधिया की छवि खराब करने की कोशिश की तो वहीं बयान बाजी से भी पीछे नहीं हटे लेकिन सिंधिया ने युद्ध की तरह खामोशी से युद्ध लडा, जाति पात से ऊपर उठकर विरोधियों को करारी शिकस्त दी। यहां तक की बीएसपी को लाकर मामला उलझाने में भी विरोधी सफल नहीं हुए।
जनता पिछले परिणाम से ही थी अचंभित, सिंपेथी थी भरपूर
पिछली बार लोगों ने वोट बीजेपी को मोदी के नाम पर दिया और कहा जीतेंगे तो सिंधिया। लेकिन ऐसा संभव नहीं था सो जब पराजय हुई तो सिंधिया परिवार के प्रति सालों से लगाव रखने वाली लाखों जनता को पछतावा हुआ। उस पर भी जनता ने जिसे चुना उन्होंने कोई काम नहीं किया जिसके नतीजे में लोगों को याद आया की उन्होंने अनजाने में कोहिनूर खो दिया इसलिए जनता के मन में सिंपेथी का भाव था, जिसे उसने भरपूर वोटों में परिवर्तित कर अपनी भूल सुधार ली हैं।
सिंधिया के सामने विकास, रोजगार चुनौती
हालाकि सिंधिया कभी अपने दौरे पर खाली हाथ नहीं आते बावजूद इसके लोगों को उनसे काफी उम्मीद हैं। पिछले कार्यकाल के सूखे से लेकर नए समर में जनता इलाके में विकास के साथ रोजगार उन्मूलक उद्योग या पर्यटन का विस्तार धरातल पर चाहती हैं जिससे पत्थर की बंद खदानों से थमी लोगों की नब्ज फिर से धड़कने लग जाए।
धमाका की टीम की तरफ से खूब खूब बधाई श्रीमंत
जो अच्छा हो उसे चुनिए ये भाव लेकर धमाका टीम ने भी अपना काम किया। अब जबकि द ग्रेट सिंधिया को जनादेश मिल गया हैं तो उन्हें पूरी टीम और टीम के एडिटर इन चीफ विपिन शुक्ला, प्रांजल शर्मा, ऋषि शर्मा, ओजस्व शर्मा एवम संरक्षक नीलू शुक्ला की तरफ से खूब खूब बधाई।
जनसंघ से लडे थे पिता माधवराव सिंधिया
पिता माधवराव सिंधिया ने पहला चुनाव जनसंघ से लड़ा था। शुरुआत में जनसंघ के टिकट से चुनाव लड़ने के बाद वो कांग्रेस में शामिल हो गए। इधर अपने पिता के निधन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 2002 में पहली बार पिता की पारंपरिक गुना सीट से उपचुनाव लड़ा और लोकसभा पहुंचे। 2004 में भी उन्होंने इसी सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। इसके बाद वह 2009 और 2014 से गुना से लोकसभा पहुंचे। लेकिन, 2019 में वो अपनी इस सीट से चुनाव हार गए। 
2007 में बने थे मंत्री
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 2007 में पहली बार केंद्रीय राज्यमंत्री के रूप में मनमोहन सरकार में जिम्मा संभाला। इसके बाद 2012 में भी वो केंद्रीय राज्य मंत्री रहे। 2019 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद पार्टी ने उन्हें मध्यप्रदेश में कोई बड़ा पद देने की बजाय कांग्रेस महासचिव बना दिया। राज्य के विधानसभा चुनाव में सिंधिया को मुख्यमंत्री का चेहरा माना जा रहा था लेकिन नतीजों के बाद कमलनाथ मुख्यमंत्री बन गए। फिर प्रदेश अध्यक्ष, राज्यसभा के लिए भी उपेक्षित किया तो उपेक्षा से नाराज मराठा वीर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी दादी विजयाराजे सिंधिया का इतिहास दोहराते हुए अपने पिता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया की जयंती पर कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। फिर भाजपा में शामिल हो गए।
1993 में पिता माधवराव सिंधिया भी कांग्रेस से अलग हुए थे
जैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी वैसे साल 1993 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया, दिग्विजय सिंह से अलग हो गए थे। उस दौर में माधवराव भी कांग्रेस में उपेक्षित महसूस कर रहे थे। इसी के चलते उन्होंने कांग्रेस को छोड़ दिया था। बाद में उन्हीं के नेतृत्व में मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस पार्टी बनाई गई, हालांकि कुछ समय बाद माधवराव सिंधिया कांग्रेस में लौट आए थे। 
राजमाता ने गिराई थी डीपी सरकार
ठीक इसी प्रकार 1967 में जब मध्य प्रदेश में डीपी मिश्रा की सरकार थी, तब कांग्रेस में उपेक्षित होकर राजमाता विजयराजे सिंधिया कांग्रेस छोड़कर जनसंघ से जुड़ गई थीं। राजमाता ने जनसंघ के टिकट पर ही गुना लोकसभा सीट से चुनाव भी जीता था। बाद में पार्टी को पोषित करने का काम किया जो आज बट वृक्ष की तरह हो चुकी हैं।
माधवराव सिंधिया ने जनसंघ से जीता था पहला चुनाव
1971 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया के बेटे माधवराव सिंधिया ने जनसंघ के टिकट पर गुना से जीत हासिल की। 1977 के चुनाव में वह यहां से निर्दलीय लड़े और 80 हजार वोटों से भारतीय लोकदल के गुरुबख्स सिंह को हराया। 1980 में कांग्रेस के टिकट पर यहां से जीते। 1984 में माधवराव सिंधिया ग्वालियर से चुनाव लड़े और गुना से कांग्रेस ने महेंद्र सिंह को टिकट दिया। उन्होंने भाजपा के उद्धव सिंह को हराया। 1989 में यहां से विजयाराजे सिंधिया एक बार फिर यहां से लड़ीं और तब के कांग्रेस के सांसद महेंद्र सिंह को शिकस्त दी। इसके बाद लगातार राजमाता विजियाराजे सिंधिया चार चुनाव यहां से जीतीं। उनके निधन के बाद माधवराव सिंधिया यहां से चुनाव लड़े और जीते।
माधवराव सिंधिया के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया 
2001 में माधवराव सिंधिया के निधन के बाद 2002 में हुए उपचुनाव में उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां से लड़े। ज्योतिरादित्य 2002 से 2014 के बीच हुए सभी लोकसभा चुनाव में जीते। इस सीट से कांग्रेस जहां 9 बार जीत दर्ज कर चुकी है तो ये सीट जनसंघ की झोली में 4 बार गई है। 1 बार भाजपा को यहां से जीत मिली है। भाजपा इस सीट पर तभी जीत सकी जब जब विजयाराजे सिंधिया  टिकट पर चुनाव लड़ीं।
ज्योतिरादित्य को विरासत में मिली राजनीति
ज्योतिरादित्य सिंधिया का जन्म 1 जनवरी 1971 को मुंबई में हुआ था और उन्होंने 1993 में हाॅवर्ड यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र की डिग्री ली। इसके बाद 2001 में उन्होंने स्टैनफोर्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस से एमबीए किया।  उनकी 1984 में बड़ौदा के गायकवाड़ घराने की प्रियदर्शिनी से शादी हुई। उनके बेटे महा आर्यमान और बेटी अनन्याराजे हैं। राजनीति उन्हें विरासत में मिली, पूज्य पिता स्व. माधवराव सिंधिया अपने समय के दिग्गज कांग्रेस नेता रहे। उनके पिता स्व. माधवराव संधिया 9 बार सांसद रहे। पूरे अंचल में अनेक विकास कार्य उन्होंने करवाए। उनके निधन के बाद जनता ने नारा दिया "जब तक सूरज चांद रहेगा माधव तेरा नाम रहेगा।"

















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