Guna Lok Sabha Chunav 2024: लोकसभा चुनाव में गुना सीट मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में सदैव राजनीति में चर्चित रही है। इस सीट पर कांग्रेस, बीजेपी नहीं बल्कि सिंधिया राजघराने या उनके प्रतिनिधि बतौर चुनाव लडे व्यक्ति का ही दबदबा रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव तक यहां से इसी तरह प्रत्याशी जीतते रहे लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में सिंधिया राजघराने के द ग्रेट श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया की मोदी लहर में हार हुई और बीजेपी के केपी यादव ने जीत दर्ज की। इस बार यहाँ 7 मई को वोटिंग हुई और अब 4 जून को नतीजे आने की तैयारी हैं।
हर बार सिंधिया सरकार
गुना लोकसभा सीट पर सिंधिया राजघराने का प्रभाव रहा है। इस संसदीय क्षेत्र पर सिंधिया राजघराने का लंबे समय से कब्जा रहा है। राजमाता विजयराजे सिंधिया, उनके पुत्र माधवराव सिंधिया और बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया, इस क्षेत्र से चुनाव जीतते रहे हैं। अब तक 14 लोकसभा चुनाव हुए हैं, जिसमें कांग्रेस ने 9 बार, भाजपा ने 4 बार और जनसंघ ने 1 बार जीत हासिल की है। सिंधिया परिवार के गढ़ के तौर पर गुना लोकसभा सीट की 50 के दशक के दौर में पहचान बन गई। राजमाता विजयाराजे सिंधिया गुना सीट से 6 बार जीतीं। माधवराव सिंधिया भी चार बार इस क्षेत्र से सांसद चुने गए। जय विलास पैलेस के वारिस ज्योतिरादित्य सिधिंया भी तीन बार इस गुना लोकसभा सीट से सांसद चुने गए, मगर वह 2019 में चुनाव हार गए। ज्योतिरादित्य 2018 के बाद भाजपा में शामिल हुए और 2024 में एक बार फिर मैदान में उतरे हैं। माना जाता हैं की बीते चुनाव में लड़ाई कार्यकर्ताओं के भरोसे लड़ी गई जबकि मोदी लहर लोगों के दिलों दिमाग में हावी हो चुकी थी, इस बात का प्रमाण बीते चुनाव का रिजल्ट आने के पहले मिलने लगा था जब पूरे गुना लोकसभा के मतदाता वोटिंग के बाद साफ कहते दिखाई दिए थे की "वोट तो मोदी को दिया हैं लेकिन जीतेंगे सिंधिया" यानी की साफ हो गया था की लड़ाई अधूरी लड़ी जाना ऊपर से मोदी लहर उसका परिणाम हुआ की रिजल्ट ने अपराजेय सिंधिया को परास्त कर डाला। इसके साथ कहने में गुरेज नहीं की लोगों के बीच द ग्रेट सिंधिया नहीं बल्कि उनके प्रचारक पहुंचे, बाहर के समर्थकों ने मैदान संभाला, उनको भी ये गुमान था की सिंधिया की जीत तो पक्की ही हैं। इधर कुछ निर्णय जैसे सिंधिया के कराए गए इलाके में करोड़ों के कार्य की जानकारी आम मतदाताओं तक ठीक से नहीं पहुंची। जबकि सिंधिया की शैली हैं की वे अपने दौरे पर कभी खाली हाथ नहीं आते, यानी की साफ बात हैं की कई बड़े काम उन्होंने करवाए लेकिन जनता को कार्यकर्ता समझा तक नहीं सके। जिसका नतीजा हुआ किले में सेंध लगी।
अब सिंधिया का जनता से सीधा जुड़ाव, लोगों की सिमपेथी, बीते 5 साल में नतीजा सिफर, हल्के में नहीं बल्कि पूरे वजन से लडा गया चुनाव
बात इस बार के चुनाव की करें तो सिंधिया पीएम मोदी की बिग्रेड के अग्रणी खिलाड़ी हैं। पिछली बार की तरह इस बार किसी और का प्रचार या सभा लेने नहीं गए बल्कि बड़ी ही सरलता से प्रत्येक व्यक्ति से मुलाकात की। रात दिन एक किया। सुख दुख बाटे, नए लोगों से सीधा जुड़ाव किया जिससे बेरीकेट टूटे, यानी चंद लोग जो सिंधिया जी तक नए लोगों के पहुंचने की रुकावट थे वे अलग थलग पड़े। सिंधिया खुद, उनकी पत्नी और बेटे ने जी भरकर प्रचार किया। आमजन के बीच बिना चेहरा देखे गए और लोगों के दिल जीतने का काम किया हैं। इधर आमजन भी सिमपेथी के मूड में दिखाई दी जिसको एहसास हुआ हैं की करोड़ों, लाखों के काम करवाने के लिए बड़ा और ईमानदार चेहरा आवश्यक हैं और सिंधिया इस कसोटी पर खरे उतरते हैं। इसके अलावा खास बात बीजेपी की प्रचार शैली, कार्यकर्ताओं का भीतरी जुड़ाव रखकर काम करने का ढंग, इसके अलावा युवाओं की सिंधिया पसंद, साथ ही विजय को लेकर किसी तरह के पूर्वानुमान को लेकर सिंधिया के सख्त निर्देश भी सार्थक चुनाव लडने की वजह बने हुए हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस प्रत्याशी का प्रभाव अशोकनगर या गुना में भले हो लेकिन शिवपुरी जिले में उनको पहचान का संकट खलता दिखाई दे रहा हैं। हां कांग्रेस का वोट बैंक जरूर उनके काम आ सकता हैं। कुल मिलाकर एक बार फिर गुना लोकसभा के किले पर सिंधिया यानी बीजेपी का झंडा लहराता दिखाई दे रहा हैं।
दावे में चार लाख पार सिंधिया
गुना लोकसभा के मतदाताओं से मिले रुझान के अनुसार इस बार सिंधिया फिर इतिहास लिखेंगे। उनकी भारी विजय होगी जिसमें लोगों के अनुसार वे ढाई से लेकर चार लाख तक विजय हासिल कर सकते हैं। तो फिर कल 4 जून का करिए इंतजार जब सिर्फ अनुमान नहीं बल्कि मतदाताओं का वो आदेश हमारे सामने होगा जिसे जनता जनार्दन ने 7 मई को मतपेटी ईवीएम में कैद कर दिया था।

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