विधवा महिलाएं भी हमारे ही समाज और देश का हिस्सा हैं। इसलिए हर किसी को इनका सम्मान करना चाहिए बबिता कुर्मी सामाजिक कार्यकर्ता
शिवपुरी। हर किसी के अपनी शादी को लेकर और शादी के बाद वाले जीवन को प्यार से बिताने के अपने सपने होते हैं। लेकिन ये सपने सभी के पूरे हो जाएं, ऐसा जरूरी नहीं क्योंकि कई लोगों के साथ देखा जाता है कि शादी के बाद किसी बीमारी या किसी अन्य वजह से उनका पार्टनर इस दुनिया को अलविदा कह देता है। ऐसे में जब किसी महिला के पति का निधन हो जाता है, तो उसके हाथ दुख और निराशा लगती है। जो सपने महिला ने शादी से पहले अपनी आने वाली जिंदगी के लिए देखे होते हैं, वो सब टूट जाते हैं। यही नहीं, आज भी हमारा समाज विधावाओं को उस नजर से नहीं देखता है, जिसकी वो असल में हकदार हैं। ऐसे में इस समाज की जिम्मेदारी बनती है कि विधवाओं को भी बाकी लोगों की तरह दर्जा मिले। ऐसे में इन्हीं महिलाओं को सम्मान दिलाने के लिए हर साल 23 जून को अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस मनाया जाता है इसी के तहत शक्तिशाली महिला संगठन शिवपुरी द्वारा ग्राम सतनवाड़ा खुर्द में समुदाय के साथ जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया जिसमे की महिला अधिकारों की संस्था की एक्सपर्ट बबिता कुर्मी ने कहा की दरअसल, सभी उम्र, क्षेत्र और संस्कृति की विधावाओं की स्थिति को विशेष पहचान दिलाने के लिए 23 जून 2011 को पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस मनाने की घोषणा की, और तब से हर साल इस दिन को 23 जून को मनाया जाता है। यहां आपको बताते चले कि ब्रिटेन की लूंबा फाउंडेशन पूरे विश्व की विधवा महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार पर विगत सात सालों से संयुक्त राष्ट्र संघ में अभियान चला रही है। जागृति सिंह ने कहा की अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस के दिन को मनाने के पीछे का उद्देश्य ये है कि पूरी दुनिया में विधवा महिलाओं की स्थिति में सुधार हो सके, ताकि वे भी बाकी लोगों की तरह समान्य जीवन जी सके और बराबरी का अधिकार प्राप्त कर सके। ऐसा इसलिए है क्योंकि भले ही हम कितनी भी तरक्की कर चुके हों, लेकिन विधवा को आज भी बराबरी की नजर से नहीं देखा जाता है। प्रोग्राम में सुपोषण सखी नर्मदा शाक्य ने कहा की विधवाओं पर होते अत्याचार दुनिया की लाखों विधवाओं को गरीबी, हिंसा, बहिष्कार, बेघर, बीमार, स्वास्थ्य जैसी समस्याएं और कानून व समाज में भेदभाव सहना करना पड़ता है। एक अनुमान के मुताबिक कहा जाता है कि, लगभग 115 मिलियन विधवाएं गरीबी में रहने को मजबूर हैं, जबकि 81 मिलियन महिलाएं ऐसी हैं जो शारिरिक शोषण का सामना करती हैं। अंत में शक्ति शाली महिला संगठन की कमलेश कुशवाह ने कहा की हर विधवा महीला को सम्मान की जरूरत है
वहीं, बात अगर भारत की करें, तो मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक लगभग चार करोड़ से ज्यादा विधवा महिलाएं भारत में हैं। ऐसे में इन महिलाओं को जरूरत है मदद की, बराबरी की आदि। आज भी विधवा महिलाएं अपने अधिकारों से वंचित हैं, लेकिन ये बात किसी को नहीं भूलनी चाहिए कि विधवा महिलाएं भी हमारे ही समाज और देश का हिस्सा हैं। इसलिए हर किसी को इनका सम्मान करना चाहिए। प्रोग्राम में आधा सेकड़ा ग्रामीणों को जागरूक किया एवम विधवा माताओं के प्रति सम्मान प्रकट किया।

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