साथ ही आपातकाल के संघर्ष को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और लोकतंत्र सेनानियों का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान से होगा।
अंत्येष्टि के लिए अब 8 हजार रुपए की जगह 10 हजार रुपए दिए जाएंगे। लोकतंत्र सेनानियों को सर्किट हाउस में रुकने पर 50% छूट मिलेगी। सर्किट हाउस में तीन दिन रुक सकेंगे। सभी दिवंगत लोकतंत्र सेनानियों को ताम्र पत्र दिए जाएंगे। टोल नाका में छूट मिलेगी और आयुष्मान कार्ड में सुविधा दी जाएगी। आकस्मिक चिकित्सा के लिए एयर एंबुलेंस का इंतजाम कराया जाएगा। एयर टैक्सी में लोकतंत्र सेनानियों को किराए में 25% छूट मिलेगी। लोकतंत्र सेनानियों के परिजन को उद्योग लगाना हो या निवेश करना हो तो सरकार मदद करेगी।
कांग्रेस को लेकर बोले सीएम, "रस्सी जल गई पर बल नहीं गया"
मुख्यमंत्री ने कहा कि रस्सी जल गई पर बल नहीं गया, कांग्रेस की यही स्थिति है। पाकिस्तान और भारत दोनों ही एक साथ आजाद हुए लेकिन पाकिस्तान में लोकतंत्र की हत्या हो गई और हमारा देश आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में लोकसभा स्पीकर का चुनाव चल रहा था और एनडीए के सामने घमंडिया गठबंधन में अपनी पूरी ताकत लगा दी। आपातकाल के दौरान कांग्रेस का साथ देने वाले लोग आज उसके घमंडिया गठबंधन में शामिल हैं। यह सभी चोर चोर मौसेरे भाई की तर्ज पर काम करते हैं।
जानिए क्या हैं मीसा
मीसा यानी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (Maintenance of Internal Security Act (MISA)) सन 1971 में भारतीय संसद द्वारा पारित एक विवादास्पद कानून था। इसमें कानून व्यवस्था बनाये रखने वाली संस्थाओं को बहुत अधिक अधिकार दे दिये गये थे। आपातकाल के दौरान (1975-1977) इसमें कई संशोधन हुए और बहुत से राजनीतिक बंदियों पर इसे लगाया गया। अन्ततः 1977 में जनता पार्टी की सरकार आने के बाद इसे समाप्त किया गया।
इनकी हुई गिरफ्तारी
1975 में 25 जून को जब आपातकाल लगा तो सबसे पहली गिरफ्तारी दिल्ली से लोकनायक जयप्रकाश नारायण की हुई थी और देर शाम से ही देशभर में गिरफ्तारियां शुरू हो गईं।
जयप्रकाश के बाद मधु लिमए, मोरारजी भाई देसाई, मधु दंडवते, प्रमिला दंडवते, रामबहादुर राय, नानाजी देशमुख, रघुवीर सिंह कुशवाहा, जबर सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, भैरों सिंह शेखावत आदि हजारों लोगों को 25 की रात से 26 जून के बीच मीसा में गिरफ्तार कर लिया गया था।
लगभग एक लाख लोगों को अन्य धाराओं में जैसे 151 डीआईआर आदि में गिरफ्तार किया गया था। जिन्हें 151 या डीआईआर आदि में गिरफ्तार किया गया था उनमें से अधिकांश लोगों को बाद में रिहा कर किया गया था। और कुछ लोगों को मीसा बन्दी में तब्दील कर दिया गया था।
हसमतउल्ला खां वारसी
भोपाल से आपातकाल की बर्बरता का शिकार जो हुए, वो जनसंघ के पदाधिकारी हसमतउल्ला खां वारसी थे। हसमतउल्ला को आपातकाल में हुई गिरफ्तारी के पहले चरण में ही गिरफ्तार कर भोपाल की सेंट्रल जेल भेज दिया गया था। लगभग 19 महीनों तक जेल का खाना और वहां की बदबूदार हवा में उनकी हालत बिगड़ती चली गई। जब तबियत ज्यादा बिगड़ गई तो वारसी को पुलिस कस्टडी में रहकर ही हमीदिया अस्पताल ले जाया गया। वहां उनकी हालत में कोई सुधार नहीं आया और खून की उल्टियों के कारण 25 दिसम्बर 1976 को उनका निधन हो गया।

कोई टिप्पणी नहीं
एक टिप्पणी भेजें