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धमाका खास खबर: UPSC Result: 'सिविल सेवा सब कुछ नहीं', सफलता नहीं मिलने पर IAS ओपी श्रीवास्तव का बेटी श्रुति के नाम मार्मिक पत्र, युवाओं को देगा ऊर्जा

शुक्रवार, 7 जून 2024

/ by Vipin Shukla Mama
* जानिए, यू पी एस सी में बेटी को अपेक्षित सफलता नहीं मिलने पर पिता जी ने बेटी को फेस बुक पर ऐसा क्या लिखा जो मीडिया में चर्चा का विषय बन गया है ?
* आईएएस पिता ने बेटी के लिखे पत्र में कहा- सिविल सेवा बहुत कुछ है। वह आर्थिक सुनिश्चितता देती है, समाज में पहचान और सम्मान दिलाती है। लेकिन, वह सब कुछ नहीं है। भारत के कैबिनेट सेक्रेटरी को कितने लोग जानते हैं। लेकिन, बाबा आम्टे और विनोबा जी जैसे लोग अमर हो जाते हैं।
सारांश: एक लक्ष्य में असफलता क्या जीवन में नए लक्ष्य का मार्ग भी बन सकती है? अक्सर ऐसा कम होता है अधिकतर व्यक्ति हताश हो जाते है और उन्हें निराशा से उबरने में बहुत समय लगता है पर जब एक लक्ष्य में असफलता नए संकल्प का कारण बन जाए तो चर्चा होना स्वाभाविक ही है।
और जब ऐसे नए लक्ष्य निज व्यक्तित्व केंद्रित नहीं रहे समाज के हित पर केंद्रित हो जाए तो चर्चा होना स्वाभाविक ही है।श्रुति ने यूपी एस सी में अच्छी रैंक के बाद अपेक्षित सफलता नहीं मिलने पर कुछ ऐसा ही निर्णय लिया है।
श्रुति के पिता श्री ओमप्रकाश श्रीवास्तव वरिष्ठ आई ए एस मध्यप्रदेश में होम सेक्रेटरी हैं। उनकी बेटी श्रुति को हाल ही की संघ लोकसेवा आयोग UPSC की परीक्षा में आशा के अनुरूप सफलता नहीं मिली तो उन्होंने बेटी के नाम फेसबुक पर पत्र लिख कर एक बहुत महत्वपूर्ण बात कही है कि बड़े से बड़े आई ए ए एस केबिनेट सेक्रेटरी को कौन जानता है जबकि समाज सेवी व्यक्ति को सब जानते हैं और उनसे निरंतर प्रेरणा भी लेते हैं। प्रयत्न किया पर भाग्य में इतना। ही था।तुमने समाज सेवा का मार्ग चुना है….
भोपाल। मध्य प्रदेश सरकार के गृह विभाग में सचिव ओमप्रकाश श्रीवास्तव ने उनकी बेटी श्रुति की एक पोस्ट पर देश के युवाओं को बड़ा संदेश दिया है। दरअसल श्रुति भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी कर रही थी। इंटरव्यू में पहुंचने के बावजूद श्रुति का चयनित सूची में नाम नहीं आ सका। श्रुति ने अपने इंटरव्यू के दौरान यूपीएससी धौलपुर हाउस पर खड़े होकर कुछ फोटोग्राफ लिए थे। चयन नहीं होने पर भी श्रुति ने अपने फोटोग्राफ को शेयर कर लिखा कि चयन नहीं हुआ। फिर भी तस्वीर पोस्ट कर रही हूं। क्योंकि मैं अपनी असफलता छुपाना नहीं चाहती। मैं स्वीकार करना चाहती हूं। इसे मेरा हिस्सा बनाओ और मेरे साथ आगे बढ़ो। इस पर आईएएस पिता ओमप्रकाश श्रीवास्तव ने बेटी को पत्र से जवाब दिया है। 
मेरी बेटी श्रुति की पोस्ट का जवाब
आईएएस ओमप्रकाश श्रीवास्तव ने सोशल मीडिया पर लिखा कि नहीं श्रुति! तुम्हारा फेलियर नहीं है। तुमने एक ऊंचा लक्ष्य सामने रखा था और देश भर के सबसे प्रतिभाशाली और मेहनती अनारक्षित वर्ग के उन 1000 युवाओं में अपना स्थान बनाया जो इस कठिन परीक्षा के अंतिम चरण तक पहुंचे। अंतिम सफलता तो कई ऐसे कारणों पर निर्भर करती है जो हमारे नियंत्रण के बाहर होते हैं। इसे ही भाग्य कहते हैं। 
तुम्हारा ज्ञान, मेहनत, किसी चयनित प्रत्याशी से कम नहीं
श्रीवास्तव ने आगे लिखा कि तुमने पहले भी सिविल सर्विस के Main Exams दिए हैं और जिस पेपर में हमेशा तुम्हारे 125 के लगभग नंबर आते रहे हैं और इस बार उससे भी अच्छा पेपर जाने के बाद भी अनुमानित 135 के स्थान पर मात्र 103 नंबर मिलना केवल भाग्य ही तो है, जिस कारण तुम किनारे तक पहुंचकर भी चयनित नहीं हो पाई। तुम्हारी मेहनत और व्यक्तित्व का मूल्यांकन तो इंटरव्यू बोर्ड ने किया है, जिसने तुम्हें 64 प्रतिशत अंक दिए हैं, जबकि आईएएस में भी 49-50 प्रतिशत पर अंतिम चयन हो जाता है। तुम्हारा ज्ञान, मेहनत और व्यक्तित्व किसी भी चयनित प्रत्याशी से कम नहीं है। 
तुम्हारा जज्बा तुम्हें समाज में स्थान दिलाएगा 
आईएएस श्रीवातस्व ने आगे लिखा कि तुम्हारी विशेषता इस बात में है कि 6 साल तक रात-दिन की मेहनत करके जो चाहा था और जिसके मिलने की पूर्ण संभावना थी वह एक झटके में समाप्त हो गया। इसके बाद भी रिजल्ट घोषित होने के दो दिन बाद जिस जज्बे से तुमने पारिवारिक विवाह समारोह में भाग लिया, डांस किया और किसी को महसूस भी नहीं होने दिया कि दो दिन पहले कितना बड़ा आघात लगा है, वह अद्भुत है। अभी भी, तुमने अपना करियर स्वयं चुन लिया है- ‘’महिलाओं और बच्चों के सशक्तीकरण को लेकर समाज के बीच काम करना’’ और इसके लिए जिस उत्साह से काम शुरू किया है वह अविश्वसनीय सा लगता है। यही जज्बा तुम्हें समाज में स्थान दिलाएगा और यह काम तुम्हें संतुष्टि देगा।
सिविल सेवा बहुत कुछ है, लेकिन सब कुछ नहीं
पिता ने बेटी के लिए लिखा- सिविल सेवा बहुत कुछ है। वह आर्थिक सुनिश्चितता देती है, समाज में पहचान और सम्मान दिलाती है।लेकिन, वह सब कुछ नहीं है। भारत के कैबिनेट सेक्रेटरी को कितने लोग जानते हैं? लेकिन बाबा आम्टे और विनोबा जी जैसे लोग अमर हो जाते हैं। तुमने इस तैयारी के दौरान जो ज्ञान अर्जित किया, मेहनत करने के संस्कार पैदा किए और इनके परिणामस्वरूप जो व्यक्तित्व विकसित किया उसमें समाज के निचले तबके में जीने वाली महिलाओं और बच्चों के प्रति करुणा का मेल हो जाने से तुम्हारा व्यक्तित्व और विराट होने वाला है। हम सब इसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। शुभकामनाएं और आशीर्वाद।  
शिवपुरी में रहे हैं कलेक्टर
श्री ओमप्रकाश श्रीवास्तव शिवपुरी जिले में कलेक्टर रहे हैं। 03/08/2016 से लेकर 08/07/2017 तक वर्ष: 2007 में उन्होंने शिवपुरी की बागडोर संभाली। इस दौरान शहर सीवर खुदाई से उजड़ा था। सड़कें खराब थीं साथ ही मड़ीखेड़ा पेयजल योजना पर ग्रहण लगा था लेकिन तत्कालीन खेल मंत्री श्रीमंत यशोधरा राजे सिंधिया के साथ श्रीवास्तव जी ने उक्त योजना के अड़ंगे हटवाए। उन्हें इसलिए याद किया जा सकता हैं की आज मड़ीखेड़ा की को लाइन बदले जाने के लिए परमिशन के फेर में अटकी हैं या झांसी एप्रोच रोड भी नहीं बन रही, आगे कलेक्टर श्रीवास्तव होते तो उन दिनों की तरह अधिकारियों को एक साथ बिठाकर विभागों की आपसी लड़ाई का अंत करवाकर काम पूरा करवा लेते। जैसा उन्होंने मड़ीखेड़ा योजना में मोटर निर्माण आदि कार्य में किया। उनकी बदौलत योजना जल्द पूरी हो सकी। इससे वे जनता के हीरो बनते जा रहे थी की तभी एक रात उनको मंदसौर में किसान आंदोलन की आग बुझाने अचानक बुलावा आ गया था।
इस विषय को लेकर ज्योतिर्विद श्री बृजेन्द्र श्रीवास्तव जी बेंगलोर ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी। जिसमें लिखा की 
जब मुझे इस की सूचना मिली तो पर इस पत्र पर ओ पी श्रीवास्तव जी को आज ही मैंने फेस बुक पर अपनी प्रतिक्रिया दी है जो यह है:
बेटी श्रुति को उनके पिताजी ओम प्रकाश श्रीवास्तव अर्थात आपका लिखा पत्र पढ़ते हुए मुझे सहसा याद आया यू एस राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का वह पत्र जो अपने बेटे के स्कूल हैड मास्टर को उन्होंने लिखा था, लिंकन ने जो पत्र में लिखा था वह श्रुति के संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में आशा के अनुरूप कम सफलता मिलने के संदर्भ में सर्वथा उपयुक्त है :
TEACH HIM HOW TO LOSE AND ALSO TO ENJOY WINNING..... TEACH HIM HOW TO HAVE FAITH ON HIS OWN IDEAS EVEN EVERY ONE TELLS HIM HE IS WRONG TEACH HIM HOW TO LAUGH WHEN HE IS SAD. TEACH HIM THERE IS NO SHAME IN TEARS
अपने पत्र में आपने जीवन के संघर्ष में खास कर प्रतियोगी परीक्षाओं में पुरुषार्थ और प्रारब्ध दोनों की अपनी अपनी भूमिका को भी युक्तिसंगत रूप से सिद्ध किया है। जो सभी प्रतिस्पर्धियों के लिए प्रेरक संदेश है । प्रारब्ध और पुरुषार्थ जीवन का संघर्ष अनादि है जैसा कि योग वाशिष्ठ में वशिष्ठ जी ने श्री राम से कहा भी है।
आपने भी श्रुति बेटी को इसी सच्चाई की याद दिलाई है। आज प्रतिस्पर्धा वाली जिंदगी में व्यग्रता अधीरता के बाद कभी निराशा और अवसाद मिलता है और कभी उछाह और उपलब्धि का आनन्द भी; कभी प्रसन्नता के स्थान पर मात्र संताप युक्त सन्तोष मिलता है।
ऐसी घटनाएं जीवन में महत्व पूर्ण मोड़ पर ले आती हैं - और श्रुति बेटी ने इस मोड़ पर जो चयन किया है "महिलाओं और बच्चों के स शक्तीकरण को लेकर काम करना समाज में " श्रुति का यह चयन उसे जो सात्विक आत्मानंद देगा उतना नौकरी में सीमित अवसर के कारण नहीं मिल सकता था,।
प्रत्येक व्यक्ति का अपने जीवन में एक मिशन होता है जिसे वह कभी समझ पाता है कभी नहीं भी। श्रुति ने अपना मार्ग का सही चयन कर लिया, यही सर्वोत्तम सफलता है। श्रुति का यह निर्णयअमेरिकी कवि Robert Frost के आत्म चिंतन की याद दिला रहा है
Two roads diverged in a wood and I. And I took the one less travelled by And that has made all the difference. Robert Frost.
इस नए पथ की मंगल कामनाएं श्रुति को और आपको भी - ब्रजेन्द्र श्री बैंगलोर।
















 

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