ग्वालियर। केवल भोजन करना ही आहार नहीं है बल्कि हमारी इंद्रियां जो ग्रहण करती हैं वह भी आहार ही है ,कान जो सुनते हैं, वह कान का भोजन है, मुंह जो ग्रहण करता है वह उसका आहार है, दृश्य आंख का भोजन है पर उन सबमें चुनाव का होना आवश्यक है। यह बात यह बात जिला योग प्रभारी दिनेश चाकणकर ने शासकीय उमावि मॉडल ग्वालियर सी एम राइस में प्रार्थना सभा के दौरान कहीं श्री चाकणकर ने कहा कि हर बात सुनी जाये, हर चीज देखी जाय, हर स्वाद ग्रहण किया जाय, यह आवश्यक नहीं । जो सार्थक, उपादेय तथा आत्मविश्वास में सहायक हैं, उन रसों को भीतर जाने दिया जाये, निरर्थक को बाहर ही छोड़ दिया जाये। पर उपयोगी, अनुपयोगी का चुनाव करे कौन? आंखों में देखने की तो क्षमता है पर चुनने की नहीं । कान सुन सकते हैं पर उचित अनुचित के बीच भेद नहीं कर सकते । स्वादेन्द्रिय सार्थक-निरर्थक के बीच भेद नहीं कर पातीं, वह मात्र स्वाद की अनुभूति कर पाती हैं जिसे चुनाव करना चाहिए वह चेतना तो प्रसुप्त-मूर्छित पड़ी रहती है । फलतः इन्द्रियां सार्थक-निरर्थक सभी संवेदनाओं को भीतर भरती रहती हैं । मन के भीतर निरर्थक अनुभूतियों एवं विचारों का कबाड़ एकत्रित होता जाता है । मन का यदि किसी प्रकार आपरेशन कर सकना सम्भव हो सके तो अधिकांश के भीतर अनर्गल विचारों के कूड़े का अम्बार जमा दिखायी देगा । देखने, सुनने, स्वाद लेने, पढ़ने आदि में चुनाव दृष्टि के न होने से ही ऐसा होता है । श्री चाकणकर ने बच्चों से बारिश के इस मौसम में पर्यावरण संरक्षण के लिए अधिक से अधिक वृक्षारोपण तथा जल संरक्षण के लिए रोजाना नहाते समय 1 लीटर पानी कम उपयोग करने का आह्वान किया।

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