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#धमाका_साहित्य_कॉर्नर: "प्रेमचंद साहित्य में प्रतिरोध सकारात्मक और रचनात्मक", प्रेमचंद जयंती पर विचार गोष्ठी संपन्न

गुरुवार, 1 अगस्त 2024

/ by Vipin Shukla Mama
शिवपुरी। म.प्र.प्रगतिशील लेखक संघ और मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन की शिवपुरी इकाई ने विगत दिवस संयुक्त रूप से एक विचार—गोष्ठी कर प्रेमचंद जयंती मनाई। ‘प्रेमचंद साहित्य में प्रतिरोध’ विषय पर आयोजित इस विचार—गोष्ठी में शिक्षक राजेन्द्र टेमक ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, 'प्रेमचंद ने न सिर्फ़ अपने लेखन से पाठकों के सामने उच्च आदर्श रखे, बल्कि निजी जीवन के व्यवहार से भी देशवासियों के सामने आदर्श प्रस्तुत किए। उन्होंने एक विधवा महिला से शादी की, तो महात्मा गांधी के आह्वान पर अंग्रेज़ों की नौकरी तक छोड़ दी।' कवि रामकृष्ण मोर्य ने कहा, 'प्रेमचंद ने अपने साहित्य में ग़रीब तबक़े की अगुआई की और सामाजिक उत्थान के लिए निरंतर लेखन किया।' श्रीमती हेमलता चौधरी ने कहा 'प्रेमचंद का साहित्य आदर्श और यथार्थ का अनुपम संगम है। वह नवयुग के निर्माता थे। बाल विवाह, विधवा विवाह, अशिक्षा, सती प्रथा और दहेज प्रथा जैसी नारी जगत से जुड़ी समस्याओं को उन्होंने अपनी रचनाओं में प्रमुखता से उठाया। और अपनी ओर से इनका समाधान पेश किया।'लेखक ज़ाहिद ख़ान ने अपने एक लेख का वाचन करते हुए कहा,'प्रेमचंद साहित्य के किरदार अपनी​ ज़िंदगी की बदहाली के लिए किस्मत को ही ज़िम्मेदार मानकर ख़ामोश नहीं बैठ जाते, बल्कि जद्दोजहद करते दिखाई देते हैं। उनमें सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक चेतना है, ​जो उन्हें शोषण के ख़िलाफ़ संघर्ष के लिए उकसाती है। वे ज़ुल्म—ओ—सितम के आगे समर्पण नहीं कर देते, प्रतिरोध के लिए डटकर खड़े हो जाते हैंं। यही वह ख़ास बातें हैं, जो प्रेमचंद के साहित्य को दूसरों से अलग करती है।' उन्होंने कहा, प्रेमचंद की चाहे कहानियां हों या उपन्यास, निबंध या फिर संपादकीय उनमें प्रतिरोध के स्वर स्पष्ट सुनाई देते हैं। यह प्रतिरोध सामाजिक,राजनीतिक और आर्थिक सभी स्तरों पर हमें एक साथ दिखाई देता है। एक सुंदर समाज का निर्माण उनका सपना था।' नवगीतकार विनय प्रकाश जैन 'नीरव' ने कहा 'प्रेमचंद की स्पष्ट सोच थी, भारतीय समाज में आर्थिक समानता के बिना सामाजिक समानता नहीं आ सकती। इसी सोच की दिशा में उन्होंने अपना साहित्य लेखन किया। उन्होंने कहा 'प्रेमचंद साहित्य में पुरुष पात्र ही नहीं, महिला पात्र भी असमानता, अत्याचार, उत्पीड़न के ख़िलाफ़ प्रतिरोध करते नज़र आते हैं।' प्रोफ़ेसर पुनीत कुमार ने कहा, 'प्रेमचंद अपने साहित्य में प्रतिरोध को प्रश्रय देते हैं। उनके साहित्य में यह प्रतिरोध विध्वंसात्मक नहीं, बल्कि सकारात्मक और रचनात्मक है।' उन्होंने कहा,'जब तक जीवन में मानव निर्मित विडंबनाएं रहेंगी, प्रेमचंद साहित्य प्रासंगिक रहेगा।'












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