मुख्यमंत्री यादव ने इन्दौर स्थित गीता भवन में भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित व्याख्यानमाला में यह घोषणा की। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के जीवन के अलग-अलग घटनाक्रमों के वृत्तान्त का बड़े ही रोचक तरीके से वर्णन किया।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा प्रदेश सरकार द्वारा इस तरह के व्याख्यान के माध्यम से आमजन तक भगवान श्रीकृष्ण के कर्म प्रधान जीवन की जानकारी पहुंचाने का कार्य किया जा रहा है।इस दौरान जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट, सांसद शंकर लालवानी, महापौर पुष्यमित्र भार्गव, विधायक महेंद्र हार्डिया, विधायक गोलू शुक्ला, विधायक मधु वर्मा, गौरव रणदिवे, गीता भवन ट्रस्ट इंदौर के अध्यक्ष रामचंद्र एरन, ट्रस्ट के मंत्री श्री रामविलास राठी सहित गणमान्यजन, गीता भवन ट्रस्ट के पदाधिकारी एवं सदस्य उपस्थित थे। जबकि विजय दत्त श्रीधर और प्रभुदयाल मिश्र मुख्य वक्ता थे।
श्रीकृष्ण का जीवन कर्म आधारित
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर प्रदेश भर में भगवान श्रीकृष्ण के जीवन पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें व्याख्यान भी शामिल हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण का पूरा जीवन कर्म आधारित रहा है। उन्होंने अलग-अलग लीलाओं के माध्यम से कर्म को प्रधान रखते हुए कर्म को ही धर्म माना। भगवान श्रीकृष्ण ने बुद्ध और उनके शिष्य के संवाद का भी रोचक तरीके से वृतांत सुनाया।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने माता देवकी और वासुदेव, बाबा नंद एवं माता यशोदा के त्याग का उल्लेख किया। उन्होंने कहा भगवान कृष्ण ने जन्म से लेकर अपने पूरे जीवन में विभिन्न लीलाओं के माध्यम से कर्म और पुरुषार्थ को प्रधान रखा। श्रीकृष्ण का भाव सौंदर्य और प्रेम का प्रतीक
मुख्य वक्ता विजयदत्त श्रीधर ने “श्रीकृष्ण के भाव, सौंदर्य और प्रेम का समुच्चय“ विषय पर अपने व्याख्यान में कहा कि भारतीय संस्कृति के भगवान श्रीकृष्ण पुरोधा रहे है। उन्होंने श्रीकृष्ण के जीवन के अलग-अलग वृतांत जिसमें कृष्ण-अर्जुन द्रोपदी, रुकमणी प्रसंग सुनाते हुए श्रीकृष्ण के जीवन के वृतांत को बड़े ही रोचक तरीके से प्रस्तुत किया। साथ ही भगवत गीता के श्लोकों और उनके अर्थों को बेहतर सहज तरीके से अपने व्याख्यान के माध्यम से प्रस्तुत किया।
श्रीकृष्ण समग्रता की प्रतिमूर्ति
प्रभु दयाल मिश्र ने “श्रीकृष्णा समग्रता की प्रतिमूर्ति“ विषय पर श्रीमद् भगवत गीता के 18 हज़ार श्लोकों के अंतिम श्लोक को अपने व्याख्यान में समाहित करते हुए कहा कि एकाग्र भाव से किया गया कर्म ही सार्थक होता है। कर्म के प्रति नियंत्रण होता है लेकिन फल पर नियंत्रण नहीं होता है। उन्होंने कहा कर्म में आनंद की अनुभूति होना चाहिए, क्योंकि कर्म करने की भूमिका में आनंद होता है, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म को ही धर्म माना। “मैं“ तो में के जड़ चेतन में समाहित है, वेद का दर्शन है, इसीलिये कहा जाता है कि ईश्वर में सभी का समावेश है। व्यक्ति को कर्म पर सदैव अडिग रहना चाहिए।

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