Dhamaka Special News: Preparation for One Nation One Election i.e. “simultaneous elections” in the country by 2029 in Modi 3.0!
* कोविंद कमेटी ने 6 महीने पहले रिपोर्ट सौंपी
Delhi दिल्ली। देश भर में वन नेशन वन इलेक्शन (एकसाथ चुनाव) की बहस के बीच जो ताज़ा जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स में आई है उसके अनुसार वन नेशन वन इलेक्शन पर विचार के लिए बनाई गई पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। यह रिपोर्ट 18,626 पन्नों की है। पैनल का गठन 2 सितंबर 2023 को किया गया था। यह रिपोर्ट स्टेकहोल्डर्स-एक्सपर्ट्स से चर्चा के बाद 191 दिन की रिसर्च का नतीजा है।
आपको बता दें कि मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे हो गए हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा के घोषणा पत्र में भी इसका वादा किया गया था। इसी के साथ पिछले महीने स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने वन नेशन-वन इलेक्शन की वकालत की थी। उन्होंने कहा था कि बार-बार चुनाव देश की प्रगति में बाधा पैदा कर रहे हैं। ऐसे में वन नेशन-वन इलेक्शन को लेकर क्या तैयारी चल रही है। इस विषय पर सूत्रों ने बताया कि इसे इसी कार्यकाल में लागू किया जाएगा। यानि भाजपा के नेतृत्व वाली NDA सरकार अपने इसी कार्यकाल में वन नेशन-वन इलेक्शन लागू करेगी।
आइये पहले जानते हैं क्या है वन नेशन वन इलेक्शन
भारत में फिलहाल राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव होना। यानी मतदाता लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट डालेंगे।
आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही हुए थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई जिसे फिर से लागू करने कि क़वायद की जा रही है।
इस पर कमेटी ने निम्न सुझाव दिए
* सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव 2029 तक बढ़ाया जाए।
* हंग असेंबली (किसी को बहुमत नहीं), नो कॉन्फिडेंस मोशन होने पर बाकी 5 साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं।
* पहले फेज में लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं, उसके बाद दूसरे फेज में 100 दिनों के भीतर लोकल बॉडी के इलेक्शन कराए जा सकते हैं।* चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आई कार्ड तैयार करेगा।
* कोविंद पैनल ने एक साथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों, जनशक्ति और सुरक्षा बलों की एडवांस प्लानिंग की सिफारिश की है।
साथ ही "एकसाथ चुनाव" के लिए अन्य देशों का तुलनात्मक विश्लेषण किया है। जिसका उद्देश्य चुनावों में निष्पक्षता और पारदर्शिता के लिए सबसे बेहतर अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं की स्टडी और उन्हें अपनाना था।
जिन देशों को इसमें शामिल किया वे इस प्रकार हैं
स्वीडन
ये देश आनुपातिक चुनावी प्रणाली अपनाता है। यानी राजनीतिक दलों को उनके वोटों के आधार पर निर्वाचित विधानसभा में सीटें सौंपी जाती हैं। उनके पास एक ऐसी प्रणाली है जहां संसद (रिक्सडैग), काउंटी और नगर परिषदों के लिए चुनाव एक ही समय में होते हैं। ये चुनाव हर चार साल में सितंबर के दूसरे रविवार को होते हैं जबकि हर पांच साल में एक बार सितंबर के दूसरे रविवार को नगरपालिका विधानसभाओं के चुनाव होते हैं।
जर्मनी/जापान
समिति के सदस्य सुभाष सी कश्यप ने बुंडेस्टाग द्वारा चांसलर की नियुक्ति की प्रक्रिया के अलावा अविश्वास के रचनात्मक वोट के जर्मन मॉडल का समर्थन किया। उन्होंने जापान की प्रक्रिया का समर्थन किया। जापान में प्रधानमंत्री को पहले नेशनल डाइट सिलेक्ट करती है। उसके बाद सम्राट मुहर लगाता है। उन्होंने जर्मन या जापानी मॉडल के समान एक मॉडल अपनाने की वकालत की।
दक्षिण अफ्रीका
यहां वोटर नेशनल असेंबली और प्रॉविन्शियल लेजिस्लेचर दोनों के लिए एकसाथ वोटिंग करते हैं। हालांकि, नगरपालिका चुनाव, प्रांतीय चुनाव से अलग होते हैं। 29 मई को दक्षिण अफ्रीका में नई नेशनल असेंबली के साथ-साथ हर प्रॉविन्स के लिए प्रांतीय विधानमंडल के चुनाव होंगे।
इंडोनेशिया
2019 से एकसाथ चुनाव करा रहा है। यहां राष्ट्रपति- उपराष्ट्रपति दोनों एक ही दिन चुने जाते हैं। "मतदाता गुप्त मतदान करते हैं और डुप्लिकेट मतदान को रोकने के लिए अपनी उंगलियों को अमिट स्याही में डुबोते हैं। 14 फरवरी 2024 को इंडोनेशिया ने एक साथ चुनाव कराए। इसे दुनिया का सबसे बड़ा एक दिवसीय चुनाव कहा जा रहा है क्योंकि लगभग 200 मिलियन लोगों ने सभी पांच स्तरों- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद सदस्य, क्षेत्रीय और नगर निगम के सदस्यों ने वोटिंग की थी।
2 सितंबर 2023 में बनी थी 8 सदस्य वाली समिति
पूर्व राष्ट्रपति कोविंद की अगुआई में 8 सदस्यों वाली कमेटी पिछले साल 2 सितंबर को बनी
थी। 23 सितंबर 2023 को दिल्ली के जोधपुर ऑफिसर्स हॉस्टल में वन नेशन वन इलेक्शन कमेटी की पहली बैठक हुई थी। इसमें पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, गृह मंत्री अमित शाह और पूर्व सांसद गुलाम नबी आजाद सहित 8 सदस्य हैं। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल कमेटी के स्पेशल मेंबर बनाए गए हैं।
ये सदस्य हैं समिति में
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, अध्यक्ष
हरीश साल्वे, वरिष्ठ अधिवक्ता
अमित शाह, गृह मंत्री (बीजेपी)
अधीर रंजन चौधरी, कांग्रेस नेता
गुलाम नबी, डीपीए पार्टी
एनके सिंह, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष
डॉ. सुभाष कश्यप, लोकसभा के पूर्व महासचिव
संजय कोठारी, पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त
संभावना पर कीजिये गौर
एक देश-एक चुनाव लागू करने के लिए कई राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल घटेगा।
जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव 2023 के आखिर में हुए हैं, उनका कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि विधि आयोग के प्रस्ताव पर सभी दल सहमत हुए तो यह 2029 से ही लागू होगा। साथ ही इसके लिए दिसंबर 2026 तक 25 राज्यों में
विधानसभा चुनाव कराने होंगे।
पहला चरणः 6 राज्य, वोटिंगः नवंबर 2025 में
* बिहारः मौजूदा कार्यकाल पूरा होगा। बाद का साढ़े तीन साल ही रहेगा।
* असम, केरल, तमिलनाडु, प. बंगाल और पुडुचेरी मौजूदा कार्यकाल 3 साल 7 महीने घटेगा। उसके बाद का कार्यकाल भी साढ़े 3 साल होगा।
दूसरा चरणः 11 राज्य, वोटिंगः दिसंबर 2026 में
* उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, पंजाब व उत्तराखंडः मौजूदा कार्यकाल 3 से 5 महीने घटेगा। उसके बाद सवा दो साल रहेगा।
* गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुराः मौजूदा कार्यकाल 13 से 17 माह घटेगा। बाद का सवा दो साल रहेगा।
* इन दो चरणों के बाद देश की सभी विधानसभाओं का कार्यकाल जून 2029 में समाप्त होगा। सूत्रों कि माने तो, कोविंद कमेटी विधि आयोग से एक और प्रस्ताव मांगेगी, जिसमें स्थानीय निकायों के चुनावों को भी शामिल करने की बात कही जाएगी।
समिति का क्या है काम
* संविधान और अन्य कानूनी ढांचे के तहत लोकसभा, विधानसभा, नगर पालिका और पंचायतों के चुनाव साथ कराने की संभावना तलाशना।
* एक साथ चुनाव का फ्रेमवर्क देना, अगर एक साथ चुनाव नहीं हो सकता तो ऐसा करने के लिए चरणों और समय- सीमा का सुझाव और अन्य जरूरी सिफारिशें करना।
* एक साथ चुनाव शुरू होने के बाद यह चक्र न टूटे इसके लिए जरूरी सुरक्षा उपायों और संविधान संशोधनों की सिफारिश करना।
* इसके लिए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम व अन्य नियमों में संशोधन की जांच और उसकी सिफारिश करना। अगर संविधान संशोधन के लिए राज्यों के समर्थन की जरूरत हो तो उसकी सिफारिश करना।
* एक साथ चुनाव कराने के लिए ईवीएम, वीवीपीएटी, मैन पावर सहित अन्य जरूरतों का आकलन।
* पंचायत से लेकर लोकसभा चुनाव तक के लिए एकल वोटर लिस्ट और वोटर आईडी को बनाए जाने की सिफारिश करना।
* चुनाव के बाद अगर सदन त्रिशंकु हो, दल-बदल हो या फिर अविश्वास प्रस्ताव के कारण कोई स्थिति बने तो उसके समाधान की तलाश करना।

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