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#धमाका न्यूज़ : शारदीय नवरात्र 3 अक्टूबर गुरुवार से, जानिए नवरात्र पर कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

बुधवार, 2 अक्टूबर 2024

/ by Vipin Shukla Mama
हिंदू धर्म में चार नवरात्रि मनाई जाती है, जिसमें से दो गुप्त नवरात्रि होती है। बाकी की दो चैत्र और आश्विन माह में मनाई जाती है। आश्विन माह में आने वाली नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। इसकी शुरूआत हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहले दिन) से होती है, जो नवमी तिथि पर समाप्त होती है। पंचांग के अनुसार इस वर्ष 3 अक्तूबर 2024, गुरुवार से शारदीय नवरात्रि आरंभ हो रही है, जो 11 अक्तूबर 2024 को समाप्त होगी। वहीं 12 अक्तूबर को दुर्गा विसर्जन होगा। इस दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, और उन्हें कई प्रकार के भोग लगाए जाते हैं। नवरात्रि में दिन के अनुसार देवी की अर्चना की जाती है, जिसमें पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की होती है। इस दौरान भक्तजन विधि विधान से आराधना करते हैं, और उपवास रखते हैं।श्री मंशापूर्ण ज्योतिष, डॉ विकासदीप शर्मा 9993462153
शारदीय नवरात्र की  तिथि और शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, शारदीय नवरात्रि का त्योहार हर साल अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि के दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है। इस पर्व की तारीखें हर साल बदलती हैं, क्योंकि हिन्दू पंचांग के अनुसार तारीखें निर्धारित होती हैं। यह त्योहार आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर के महीने में ही मनाया जाता है।
इस साल शारदीय नवरात्रि 03 अक्टूबर से 12 अक्टूबर 2024 तक मनाया जाएगा।
नवरात्र पर कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 
शारदीय नवरात्रि कलश स्थापना मुहूर्तः 3 अक्टूबर सुबह 6.19 से 7.23 बजे तक (कुल 1 घंटा 4 मिनट)
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त 3 अक्टूबर सुबह 11.52 बजे से 12.39 बजे तक
शारदीय नवरात्र की तिथियां 
पंचांग के अनुसार इस साल आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि का आरंभ 3 अक्तूबर 2024 को सुबह 12 बजकर 19 मिनट से हो रहा है। इसका समापन 4 अक्टूबर को सुबह 2 बजकर 58 मिनट पर होगा। उदया तिथि के मुताबिक शारदीय नवरात्रि का पहला दिन 3 अक्टूबर 2024 को होगा, और इस दिन से ही नवरात्रि की शुरूआत होगी।
दूसरा दिन- मां ब्रह्मचारिणी की पूजा – 4 अक्तूबर 
तीसरा दिन- मां चंद्रघंटा की पूजा – 5 अक्तूबर 
चौथा दिन- मां कूष्मांडा की पूजा – 6 अक्तूबर 
पांचवां दिन- मां स्कंदमाता की पूजा – 7 अक्तूबर
छठा दिन- मां कात्यायनी की पूजा – 8 अक्तूबर 
सातवां दिन- मां कालरात्रि की पूजा – 9 अक्तूबर 
आठवां दिन- मां सिद्धिदात्री की पूजा – 10 अक्तूबर 
नौवां दिन- मां महागौरी की पूजा – 11 अक्तूबर 
विजयदशमी – 12 अक्टूबर 2024, दुर्गा विसर्जन
शारदीय नवरात्र का महत्व
शारदीय नवरात्रि को महानवरात्रि या अश्विन नवरात्रि के रूप में भी जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, जब भगवान राम, माता सीता और अपने भाई लक्ष्मण के साथ 14 साल के लिए वनवास गए थे, तो वहां रावण ने धोखे से माता सीता का हरण कर लिया था। इसके बाद भगवान राम ने माता सीता की रक्षा के लिए रावण से युद्ध किया और उस पर विजय प्राप्त की। तभी से इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाने लगा। 
इसके पीछे एक और पौराणिक कथा भी मौजूद है। जिसके अनुसार, मां दुर्गा ने नौ दिनों तक दुष्ट राक्षस महिसासुर से युद्ध किया था और दसवें दिन उसे पराजित किया था। इसलिए लगातार नौ दिनों तक भक्त माता की उपासना करते हैं और उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस समय पूरी श्रद्धा से मां दुर्गा की पूजा करने से आपके सभी कष्ट दूर हो सकते हैं और आप एक समृद्ध जीवन की शुरुआत कर सकते हैं।
इस बार मां दुर्गा की क्या है सवारी?
इस वर्ष मां हाथी पर सवार होकर आ रही हैं ऐसे में इस बात के प्रबल संकेत मिल रहे हैं कि, इससे सर्वत्र सुख संपन्नता बढ़ेगी। इसके साथ ही देश भर में शांति के लिए किए जा रहे प्रयासों में सफलता मिलेगी। यानी कि पूरे देश के लिए यह नवरात्रि शुभ साबित होने वाली है।
घटस्थापना या कलशस्थापना के लिए आवश्यक सामग्री
सप्त धान्य (7 तरह के अनाज), मिट्टी का एक बर्तन, मिट्टी, कलश, गंगाजल (उपलब्ध न हो तो सादा जल), पत्ते (आम या अशोक के), सुपारी, जटा वाला नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र, पुष्प। 
शारदीय नवरात्र में घटस्थापना की विधि 
नवरात्रि के पहले दिन व्रती द्वारा व्रत का संकल्प लिया जाता है। इस दिन लोग अपने सामर्थ्य अनुसार 2, 3 या पूरे 9 दिन का उपवास रखने का संकल्प लेते हैं। संकल्प लेने के बाद मिट्टी की वेदी में जौ बोया जाता है और इस वेदी को कलश पर स्थापित किया जाता है। हिन्दू धर्म में किसी भी मांगलिक काम से पहले भगवान गणेश की पूजा का विधान बताया गया है और कलश को भगवान गणेश का रूप माना जाता है इसलिए इस परंपरा का निर्वाह किया जाता है। कलश को गंगाजल से साफ की गई जगह पर रख दें। इसके बाद देवी-देवताओं का आवाहन करें। कलश में सात तरह के अनाज, कुछ सिक्के और मिट्टी भी रखकर कलश को पांच तरह के पत्तों से सजा लें। इस कलश पर कुल देवी की तस्वीर स्थापित करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें इस दौरान अखंड ज्योति अवश्य प्रज्वलित करें। अंत में देवी मां की आरती करें और प्रसाद को सभी लोगों में बाट दें।

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