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#धमाका धर्म: भैरव अष्टमी शुक्रवार 22 नवंबर को, जानिए पूजा विधि, मुहूर्त

गुरुवार, 21 नवंबर 2024

/ by Vipin Shukla Mama
काल भैरव जयंती, जिसे भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है, भगवान शिव के उग्र रूप कालभैरव की जयंती मनाने का पर्व है। हिंदू धर्म में, कालभैरव को भगवान शिव का रक्षक और विनाशक माना जाता है। उनकी पूजा करने से भक्तों को भय, रोग और शत्रुओं से मुक्ति मिलती है। कालभैरव जयंती शुक्रवार, 22 नवंबर को मनाई जाएगी।
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कालभैरव जयंती का महत्व 
कालभैरव जयंती का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। आइए जानते हैं इसके कुछ प्रमुख कारण:
भय और विनाश से मुक्ति
कालभैरव को भगवान शिव का उग्र रूप माना जाता है, जो विनाशक और रक्षक दोनों हैं। उनकी पूजा करने से भक्तों को भय, परेशानियों और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है।
मनोकामना पूर्ति
ऐसा माना जाता है कि सच्ची श्रद्धा से कालभैरव की पूजा करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। वे अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए भगवान कालभैरव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
आध्यात्मिक विकास
भगवान कालभैरव की पूजा आध्यात्मिक विकास में भी सहायक मानी जाती है। उनकी उपासना से आंतरिक शक्ति का विकास होता है और नकारात्मक विचारों पर विजय प्राप्त होती है।
तंत्र साधना में स्थान
 तंत्र साधना में कालभैरव की उपासना का विशेष महत्व है। तंत्र साधक अलौकिक शक्तियों को प्राप्त करने के लिए भगवान कालभैरव की आराधना करते हैं।
कालभैरव जयंती तिथि
इस वर्ष कालभैरव जयंती की तिथि और मुहूर्त निम्नलिखित हैं:
तिथि: शुक्रवार, 22 नवंबर 2024
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 21 नवंबर 2024, शाम 06:04 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त: 22 नवंबर 2024, शाम 04:57 बजे
कालभैरव जयंती की पूजा विधि
कालभैरव जयंती के पर्व पर भगवान कालभैरव की विधि-विधान से पूजा की जाती है। आइए जानते हैं इसकी सरल पूजा विधि:
पूजा की तैयारी
सर्वप्रथम सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहन लें। पूजा स्थल को साफ करके गंगाजल से शुद्ध करें।
आसन और वेदी निर्माण
आसन पर बैठकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करें। एक चौकी या वेदी बनाकर उस पर लाल रंग का कपड़ा बिछा दें।
आह्वान और स्थापना
वेदी पर भगवान कालभैरव की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद उनका ध्यान करते हुए उन्हें पुष्पांजलि अर्पित करें और मंत्रों का उच्चारण करते हुए उनका आवाहन करें।
षोडशोपचार पूजन
भगवान कालभैरव को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर का मिश्रण), गंगाजल, जलाभिषेक करें। इसके बाद उन्हें सफेद चंदन का तिलक लगाएं।
भोग और आरती
भगवान कालभैरव को भोग अर्पित करें। भोग में प्रसाद के रूप में बेसन का लड्डू, मीठी रोटी, फल आदि चढ़ाएं। इसके पश्चात धूप, दीप और अगरबत्ती जलाएं। अंत में भगवान कालभैरव की आरती गाएं और उनकी स्तुति करें।
मंत्र जाप
आप अपनी मनोकामना के अनुसार भगवान कालभैरव के विभिन्न मंत्रों का जाप कर सकते हैं। कुछ प्रचलित मंत्र इस प्रकार हैं: ॐ भैरवाय नमः , ॐ महाकाल भैरवाय नमः , हे कालभैरव रक्ष मां, सर्वभय हर सर्वदा।।
समाप्ति और प्रसाद वितरण
अंत में पूजा का समापन करें। भगवान कालभैरव को अर्पित किया गया प्रसाद ग्रहण करें और परिवार के अन्य सदस्यों को भी वितरित करें।
कालभैरव से जुड़ी कथा 
एक बार नारद मुनि ने भगवान शिव से पूछा कि कालभैरव की उत्पत्ति कैसे हुई। भगवान शिव ने उत्तर दिया कि यह कथा अत्यंत पुरानी है और धर्म, न्याय और अधर्म के परिप्रेक्ष्य में इसे समझा जा सकता है। प्राचीन काल में, प्रजापति दक्ष ने एक महान यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सभी देवताओं को निमंत्रित किया गया था। परंतु, उन्होंने भगवान शिव और उनकी पत्नी सती को आमंत्रित नहीं किया। सती, जो दक्ष की पुत्री थीं, अपने पिता के यज्ञ में बिना निमंत्रण के चली गईं, जहां दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया। इस अपमान से व्यथित होकर, सती ने यज्ञ अग्नि में आत्मदाह कर लिया। सती के आत्मदाह के बाद, भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने अपनी जटाओं से वीरभद्र को उत्पन्न किया। वीरभद्र ने यज्ञ को नष्ट कर दिया और दक्ष का वध कर दिया। इसके बाद, शिव ने सती के शरीर को अपने कंधे पर उठा लिया और तांडव नृत्य करने लगे। इस घटना से सृष्टि में हाहाकार मच गया। सृष्टि को विनाश से बचाने के लिए, भगवान विष्णु ने शिव को शांत करने के लिए उनके सामने प्रकट हुए। भगवान विष्णु के हस्तक्षेप से शिव का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने सती के शरीर को पृथ्वी पर बिखरा दिया, जिससे शक्ति पीठों का निर्माण हुआ। इसके बाद, शिव ने अपनी जटाओं से कालभैरव को उत्पन्न किया। कालभैरव को धर्म के रक्षक और अधर्म के नाशक के रूप में जाना जाता है। कालभैरव का स्वरूप अत्यंत भयानक और डरावना था। उनके हाथों में त्रिशूल और खप्पर था, और उनके गले में नरमुंड की माला थी। उनके वाहन कुत्ता था, जो उनकी वफादारी और शक्ति का प्रतीक था। कालभैरव ने उत्पन्न होते ही अधर्म का नाश करना शुरू कर दिया और उन्होंने सभी बुरी शक्तियों को समाप्त कर दिया।












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