अगर कभी बनारस आना हो तो एक बार नवंबर और दूसरी बार फ़रवरी में जरूर आइए, नवंबर अथवा फ़रवरी का महीना सचमुच बनारस का महीना है।
सारे संसार की सुंदरता इनदिनों बनारस के आग़ोश में जैसे सम्माहित हो जाती है।
बनारस को इतना भरापूरा और सुमधुर मौन के साथ अन्य दिनों में नहीं देख सकते। जैसे कुछ कहने के लिए शब्द निरर्थक पड़ गए हों।
इस शहर को सुनने के लिए कान लगाने होंगे, चेतसिंह घाट की शीतल सीढ़ियों पर बैठकर, कबूतरों के गुटरगूँ की तरफ।
मंदिर से लहराती घण्टियों, मंत्रोच्चार और आजान की स्वर लहरियों की तरफ।
सुनहली धूप हौले हौले कपड़े के पीछे से जैसे नर्म गर्म हाथों से थपथपाती रहती है।
एक अजीब सी अलमस्ती फिज़ाओ में छायी रहती है।
प्रेमी जोड़े दिन के दिन चहकते रहते हैं। घाट की धूल पतझड़ के रस से सनी महकती रहती है।
पुराने पीपल और बट वृक्षों के झुरमुट से चिड़ियों की चहचहाहट जैसे सीधे हृदय को झंकृत करती रहती है। 
सुबह सुबह हल्की सी चादर लिए घाटों पर निकल जाएं।
धीरे धीरे आसमान रंग बदलता जाएगा , उदयाचल की सुनहली आभा ज्यों ज्यों बिखरती जाएगी सृष्टि का अखंड सौंदर्य हरतरफ से फूट पड़ेगा।
किरणों के संग संग घाट, नदी और नदी के पार की रेती, रेती के उस पर के जंगल सबके सब पल पल बदलते जाएंगे।
एक एक घूंट के साथ उतार फेंकिये सीने से दुनियाभर की बोझ को।
नदी मंथर गति से बहती जाती है जिसके संग संग बह जाता है मन का सारा कलुष।ऐसे में नदी को निहारना आहा कितना मंत्रमुग्ध करता है।
हजारों किलोमीटर की तूफानी यात्रा कर इन दिनों मेहमान बने विदेशी परिंदे अपने कलरव और विभिन्न मुद्राओं से सारे वातावरण को झंकृत और संगीतमय कर देते हैं।
ऐसा लगता है जैसे यकायक सबकुछ ठहर गया हो।
सारा दृश्य फ्रीज़ हो गया हो।
किसी चित्रकार के ताजा चित्र की तरहमनहर और फिर उतर जाता है कुछ पलों में आपके अंदर बनारस। (ओम प्रकाश राय की कलम से)

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