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#धमाका खास खबर: "अगर कभी बनारस आना हो तो एक बार नवंबर और दूसरी बार फ़रवरी में जरूर आइए"

बुधवार, 20 नवंबर 2024

/ by Vipin Shukla Mama
नवंबर और बनारस 
अगर कभी बनारस आना हो तो एक बार नवंबर और दूसरी बार फ़रवरी में जरूर आइएनवंबर अथवा फ़रवरी का महीना सचमुच बनारस का महीना है।
सारे संसार की सुंदरता इनदिनों बनारस के आग़ोश में जैसे सम्माहित हो जाती है।
बनारस को इतना रसपूर्ण, अनोखा, खूबसूरत और जीवंत किसी दूसरे दिनों में नहीं देख सकते।
सारा बनारस अचानक गुलमोहर सा चटक और पुरनूर हो जाता है।
बनारस को इतना भरापूरा और सुमधुर मौन के साथ अन्य दिनों में नहीं देख सकते। जैसे कुछ कहने के लिए शब्द निरर्थक पड़ गए हों।
जैसे एक सीमा के बाद भाव स्वतः असमर्थ हो गए हों अनुभवों को व्यक्त करने में।
इस शहर को सुनने के लिए कान लगाने होंगे, चेतसिंह  घाट की शीतल सीढ़ियों पर बैठकर, कबूतरों के गुटरगूँ की तरफ।
मणिकर्णिका में जलती किसी चिता से उदित होते अस्फुट स्वर की तरफ।
घाट पर उछलते बंदरों,आचमन करते साधुओं और तिलक लगवाते किसी जजमान की तरफ़।
मंदिर से लहराती घण्टियों, मंत्रोच्चार और आजान की स्वर लहरियों की तरफ। 
थककर बैठ गए किसी जोड़े के प्रेमालाप की तरफ।
हवाएं मद्धम मद्धम सारा दिन रबाब के तार की तरह आपके त्वचा को छूकर गुदगुदाती रहती हैं।
सुनहली धूप हौले हौले कपड़े के पीछे से जैसे नर्म गर्म हाथों से थपथपाती रहती है।
प्रकृतिपूर्ण अनुपम नज़ारे विभोर करते रहते हैं। 
एक अजीब सी अलमस्ती फिज़ाओ में छायी रहती है।
प्रेमी जोड़े दिन के दिन चहकते रहते हैं। घाट की धूल पतझड़ के रस से सनी महकती रहती है।
नौकाएं अल्हड़ चाल से नदी को चीरती रहती हैं। 
पुराने पीपल और बट वृक्षों के झुरमुट से चिड़ियों की चहचहाहट जैसे सीधे हृदय को झंकृत करती रहती है। 
सुबह सुबह हल्की सी चादर लिए घाटों पर निकल जाएं।
हवाओं में एक खुशनुमा नमी और परिचित सी सिहरन आपके रूह को स्पंदित करने लगती है।
सहसा गंगा किनारे का स्निग्ध वातावरण आपको अपने सम्मोहन में जकड़ लेगा।
धीरे धीरे आसमान रंग बदलता जाएगा , उदयाचल की सुनहली आभा ज्यों ज्यों बिखरती जाएगी सृष्टि का अखंड सौंदर्य हरतरफ से फूट पड़ेगा। 
किरणों के संग संग घाट, नदी और नदी के पार की रेती, रेती के उस पर के जंगल सबके सब पल पल बदलते जाएंगे।
तुलसी चाय की खुशबू के संग अस्सी घाट पर निश्चल भाव से बैठ जाइए। 
एक एक घूंट के साथ उतार फेंकिये सीने से दुनियाभर की बोझ को।
नदी मंथर गति से बहती जाती है जिसके संग संग बह जाता है मन का सारा कलुष।ऐसे में नदी को निहारना आहा कितना मंत्रमुग्ध करता है।
हजारों किलोमीटर की तूफानी यात्रा कर इन दिनों मेहमान बने विदेशी परिंदे अपने कलरव और विभिन्न मुद्राओं से सारे वातावरण को झंकृत और संगीतमय कर देते हैं। 
ऐसा लगता है जैसे यकायक सबकुछ ठहर गया हो।
सारा दृश्य फ्रीज़ हो गया हो। 
किसी चित्रकार के ताजा चित्र की तरहमनहर और फिर उतर जाता है कुछ पलों में आपके अंदर बनारस। (ओम प्रकाश राय की कलम से)

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