शिवपुरी। कैकई को भावुकता में वचन देना राजा दशरथ को भारी पड़ गया कि उन्हें अपने प्राणों को भी गंवाना पड़ा, इसलिए भावुकता में वचन देना जीवन को भी बिगाड़ सकता है, उक्त प्रसंग सुनाकर विदुषी वक्ता अंजली आर्या ने रामकथा को चतुर्थ दिवस विस्तार दिया।
महर्षि वाल्मीकि कृत श्री राम कथा में दीदी अंजली आर्या ने कहा कि भगवान राम ही थे जो हर स्थिति में सम थे और जो हर परिस्थिति में सम रहता है न वह भावुक होता है न अधिक क्रोधी, लेकिन यह भी रामायण सिखाती है कि विनम्रता भी एक सीमा तक ही होती है लेकिन जब सीमा टूटे तब धनुष बाण उठाना ही पड़ता है।
विदुषी अंजली आर्या ने गांधी पार्क में चल रही रामकथा में कहा एक एक पात्र ने मिलकर रामायण को रामायण बनाया है। जब तक मानव से मानव नही जुड़ेगा तब तक उत्तम समाज उत्तम राष्ट्र का निर्माण नही हो सकता।विवाह उपरांत सीता जी माता सुनैना उन्हें सीख देती है कि पिता के समान ससुर और माँ के समान सासु को मानना, परिवार को संगठित रखना क्योंकि स्त्री में सहनशीलता अधिक होती है अतः घर को एक रखने बच्चों को संस्कार देने की जिम्मेदारी महिला की ही होती है, अब आज आप कल्पना कीजिये कि कोई माता इस तरह की सीख देती है क्या?क्योंकि रामायण से दूरी भगवान राम के वास्तविक चरित्र से दूरी समाज मे विसंगतियों समस्यायों की मूल जड़ है।रामायण सीख देती है कि मंदिर में जाकर जल चढ़ाओ या न चढ़ाओ परन्तु घर में बैठे माता पिता रूपी देवी और देवता को दुखी मत करो। उत्तम कार्य से उत्तम विचार से ही घर को मंदिर बना लेने की सीख देती है रामायण।
रामायण त्याग सिखाती है, सीता, उर्मिला, मांडवी, कौशल्या जी का जीवन देख लो, भरत का जीवन देख लो लक्ष्मण का जीवन देख लो त्याग कही से आता है तो रामायण से। आज के युवा संघर्ष शील नही बन रहे क्योंकि उन्हें संस्कार ही नही मिल रहे इसीलिए छोटी छोटी बातों में फंदे पर झूलने में भी समय नही लगाते, छोटी छोटी समस्यायों से ही हार मान जाते हैं।भगवान राम ने विनम्रता से सभी को जीता।
श्री राम को जब वनवास हुआ तो उनने कहा कि राज काज में व्यस्त होता तो कर्तव्यों से बंधा रहता है लेकिन ऋषि मुनियों की सेवा का जो अवसर मुझे मिला वह अतुलनीय है। अब कल्पना कीजिये कि इस तरह की सीख विचार अगर मनुष्यो में आ जाये तो आज भौतिकता की जो अंधी दौड़ चल रही है वह रुकेगी की नही। महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण श्री राम जी के चरित्र से जन जन को जोड़ने जीवन को जीने की कला सिखाने का मुख्य आधार है, जिससे हमने दूरी बना ली और संकटों को आमंत्रण स्वतः ही दिया है।
चतुर्थ दिवस ब्राह्मण समाज, गहोई वैश्य समाज, शिवहरे समाज, नामदेव समाज व क्षत्रिय महासभा द्वारा दीदी अंजली आर्या का अभिनंदन किया। सभी को दीदी ने रामायण भेंट की। रघुवीर सिंह जी गौर, गिरीश महाराज व विदेशों से आये शिष्यों ने भी पूरे समय रामायण का श्रवण किया।
चतुर्थ दिवस का संचालन प्रियंका शिवहरे, मोना ढींगरा व विनीता जैन ने किया।चतुर्थ दिवस का प्रसाद गहोई वैश्य समाज की और से वितरित किया गया। सभी का आभार मुख्य यजमान इंद्रजीत बिल्लू चावला ने व्यक्त किया।

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