साल के बड़े त्योहारों में शामिल होली का त्योहार आ पहुंचा है। होलाष्टक लगते ही होली का एहसास होने लग जाता है। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक की अवधि को होलाष्टक कहा जाता है। इस साल होलाष्टक 7 मार्च से शुरू होने जा रहा है, जो 13 मार्च तक रहेगा। होलाष्टक पर शुभ काम बंद हो जाते हैं। 13 मार्च को होलिका दहन किया जाएगा।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
होलिका दहन का मुहूर्त 13 मार्च 2025 को रात 10:20 बजे से लेकर रात 1:15 बजे तक है। साल 2025 में होलाष्टक 7 मार्च से शुरू होगा और इसका समापन होलिका दहन दहन के साथ 13 मार्च 2025 को हो जायेगा। 14 को होली खेली जाएगी।
होलाष्टक के आठ दिनों में आठ ग्रह उग्र हो जाते है, इसलिए इस समय में किसी भी शुभ काम की मनाही होती है। ऐसा कहा जाता है इस समय में शुरू किए गए सभी शुभ काम का अच्छा फल नहीं मिलता है। साथ ही तांत्रिक अभिक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। महिलाओं को विशेषकर जो गर्भवती हो या मासिक धर्म से हो उनको रात्रिकाल में एकांत या अँधेरे में नही जाना चाहिए।
होलाष्टक में वर्जित कार्य
होलाष्टक के दौरान शादी, मुंडन, गृह प्रवेश, बच्चे का नामकरण आदि जैसे मांगलिक और शुभ कार्यों को करने से बचना चाहिए। होलाष्टक में घर का निर्माण या गृह प्रवेश नहीं किया जाता है।
नए कपड़े, वाहन और आभूषण भी खरीदने से बचें, क्योंकि ये अशुभ हैं। आध्यात्मिक और धार्मिक गतिविधियों में संलग्न होना चाहिए। होलाष्टक के समय हवन और भगवान विष्णु की पूजा करना बहुत सराहनीय है। नाम जप करने से विशेष फल प्राप्त होता है ।
होलाष्टक की मान्यता क्यों है, जानिए
सनातन परंपरा की मान्यता के अनुसार, होली के पहले आठ दिनों यानी अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक विष्णु भक्त प्रह्लाद को काफी यातनाएं दी गई थीं।
सनातन परंपरा की मान्यता के अनुसार, होली के पहले आठ दिनों यानी अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक विष्णु भक्त प्रह्लाद को काफी यातनाएं दी गई थी। प्रह्लाद को फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी को ही हिरण्यकश्यप ने बंदी बनाया था, उसे जान से मारने के लिए तरह-तरह की यातनाएं दी गईं। यातनाओं से भरे उन आठ दिनों को ही अशुभ मानने की परंपरा बन गई। कहते हैं कि प्रह्लाद को मिली यातनाओं के बाद से ही होलाष्टक को मनाने का चलन शुरू हुआ। 'हिरण्यकश्यप की बहिन होलिका जिसको अग्नि से ना जलने के वरदान था, पूर्णिमा के दिन ही प्रह्लाद की बुआ होलिका अपने भतीजे प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गयी थी लेकिन भक्त प्रहलाद के नाम जप के प्रभाव और ईश्वर की अनंत भक्ति विश्वास ने होलिका को जला दिया और प्रहलाद जीवित रहे।

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