40 करोड़ लोगों के लिए रहने खाने और आवागमन की व्यवस्थाओं के अलावा एक बड़ा चैलेंज था 40 करोड़ लोगों के आने से उनके खाने पीने और अन्य दिनचर्या से निकलने वाले प्लास्टिक वेस्ट और उससे होने वाले प्रदूषण और पर्यावरण को होने वाले नुक़सान का।
मेला प्रबंधन समिति का अनुमान था कि 40 करोड़ लोगों के आने से 40 हज़ार टन प्लास्टिक वेस्ट पैदा होगा जो पर्यावरण के लिए बहुत ज़्यादा हानिकारक होगा। अब इससे निपटने के लिए सरकार और आरएसएस के बीच मंथन का दौर शुरू हुआ और फिर वही हुआ जो गंगा को मंज़ूर था, नर्मदा की बेटी Shipra Pathak ने गंगा को प्लास्टिक से मुक्त करने का बीड़ा उठाया और प्रयागराज के संगम घाट पर शुरू हुआ “एक थैला-एक थाली” अभियान।
#एक_थैला_एक_थाली अभियान का बीड़ा उठाया शिप्रा पाठक के पंचतत्व फाउंडेशन ने, जिनके करीब 15000 कार्यकर्ताओं ने इन 45 दिनों में 12 लाख स्टील की थालियों, 15 लाख कपड़े के थैले और ढाई लाख स्टील की ग्लासों का वितरण किया। ये वितरण विशेष रूप से भंडारा चला रहे संस्थाओं और अखाड़ों को किया गया ताकि प्लास्टिक के दौने पत्तल और प्लास्टिक गिलासों के उपयोग को रोका जा सके। गुजरात से लेकर मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश और पंजाब से लेकर तमिलनाडु तक से कुल 7258 स्थानों से लोगों ने थैले थाली भेजे। इस महा कुंभ में कुंभ जितने ही महाभियान में चार चांद लगाने के लिए इसमें पौधारोपण को भी जोड़ा गया। 20 लाख पौधों का वितरण भी पंचतत्व फाउंडेशन द्वारा किया गया। संस्था की प्रमुख शिप्रा पाठक ने पौधों को लोगों की धार्मिक आस्था से जोड़ते हुए इस पौधा वितरण योजना का नाम अक्षय वट वितरण योजना रखा ताकि हर व्यक्ति अपनी पीढ़ियों तक इस कुंभ यात्रा को अविस्मरणीय बनाये रखने के लिए उस पौधे का रोपण अवश्य करे।
थैला-थाली वितरण अभियान का प्रतिफल ये हुआ कि कुंभ में आने वालों की अनुमानित संख्या से कहीं ज़्यादा लोगों के आने के बावजूद मेला प्रशासन के अनुमानित 40 हज़ार करोड़ टन प्लास्टिक कचरे की बजाय 29 हज़ार टन कम कचरा निकला यानि सिर्फ़ इस एक अभियान के चलते प्लास्टिक कचरे में 70% से अधिक की कमी आई।
आरएसएस की अखिल भारतीय पर्यावरण सेवा से संबंधित शाखा के प्रमुख गोपाल आर्या और आर एस एस प्रमुख मोहन भागवत की प्रेरणा से चले इस महाभियान में बनती गई थालियों और थैलों से सिर्फ़ कुंभ के आयोजन के समय ही
नहीं बल्कि आने वाले वर्षों तक पर्यावरण को प्लास्टिक से होने वाले नुक़सान से बचाया जा सकेगा।
देश ही नहीं बल्कि विश्व के मीडिया ने शिप्रा पाठक के इस अभियान को सराहा है, देश का कोई भी चैनल कोई भी अखबार ऐसा नहीं बचा जिसने “एक थैला-एक थाली” अभियान को न कवर किया हो।
सोशल मीडिया भले ही कुंभ में आईआईटी बाबा, मोनालिसा और हर्षा रिछारिया में अटक कर रह गया हो लेकिन बाक़ी सब जगह इस अभियान की अच्छी खासी लोकप्रियता रही। सोशल मीडिया भी इस मुहिम का हिस्सा बने और नदियों के संरक्षण के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाली शिप्रा और उनके पंचतत्व फाउंडेशन से जुड़े तभी हमारी नदियाँ वापस से निर्मल होंगी और हमारा पर्यावरण स्वच्छ और सुरक्षित बनेगा।

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