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#धमाका साहित्य कॉर्नर: "उज्जैन के विक्रम उत्सव में ग्वालियर के ख्यातिनाम ज्योतिर्विद ब्रजेंद्र श्रीवास्तव लिखित "मेघ के मृदंग" की प्रस्तुति को दर्शकों ने सराहा

शुक्रवार, 7 मार्च 2025

/ by Vipin Shukla Mama
उज्जैन। "उज्जैन के विक्रम उत्सव में ग्वालियर के ख्यातिनाम ज्योतिर्विद ब्रजेंद्र श्रीवास्तव लिखित "मेघ के मृदंग" की प्रस्तुति को दर्शकों ने खूब सराहा। आपको बता दें कि उज्जैन में चल रहे विक्रम उत्सव 2025 में बीते बुधवार 5 मार्च को मेघ के मृदंग कथक नृत्य नाट्य प्रस्तुत किया गया जिसे श्रीवास्तव ने लिखा है। इसमें ग्वालियर की बेटी समीक्षा शर्मा ने इसकी कोरियोग्राफी की है।
 इस प्रकार 26 फरवरी से 30 जून तक चलने वाले इस विक्रम महोत्सव में ग्वालियर ने शानदार उपस्थित दर्ज की है। लेखक एवं संपादक डॉ राम विद्रोही ने इसे ग्वालियर का गौरव बढ़ाने वाला प्रसंग बताया है।
बृजेंद्र श्रीवास्तव का यह दूसरा कत्थक नृत्य नाट्य
बृजेंद्र श्रीवास्तव का यह दूसरा कत्थक नृत्य नाट्य है इसके पहले उनका लिखा इदम ऋतम् इदं शाश्वतं वसंत ऋतु आधारित नृत्य नाट्य पद्मश्री राजेंद्र गंगानी की कोरियोग्राफी के साथ समीक्षा जी ने ही ग्वालियर में प्रस्तुत किया था। 
ज्ञान का सागर कहें ब्रजेंद्र जी को तो अतिशयोक्ति नहीं
पाठकों किसी भी एक इंसान में खूबियां होना नई बात तो नहीं लेकिन उन खूबियों के वर्णन को सुन लोगों की आँखें बड़ी हो जाएं और लोग वाह वाह करने लगें तो ऐसे व्यक्ति को अनूठी प्रतिभा का धनी कह सकते हैं। कुछ ऐसे ही हैं ज्योतिर्विद ब्रजेंद्र श्रीवास्तव जी जो किसी मायने में गूगल के ज्ञान से कमतर नहीं। आपको जानकर खुशी होगी कि ब्रजेंद्र जी के 
 साहित्य रङ्गकर्म और संगीत पर सौ से अधिक आलेख प्रकाशित हो चुके हैं जो उनके खगोल और ज्योतिष लेखन के अलावा हैं।
जानिए समीक्षा शर्मा कौन
समीक्षा शर्मा दूरदर्शन और आईसीसी और स्पिक मैके की चयनित कलाकार हैं। आप गणतंत्र दिवस पर भारत के कई विदेशी राज दूतावासों में भी कथक प्रस्तुति कर चुकी हैं आप खजुराहो महोत्सव कालिदास महोत्सव के अंतर्गत महोत्सव आदि में भी प्रस्तुति दे चुकी हैं।
ज्योतिर्विद ब्रजेंद्र श्रीवास्तव ने "मेघ के मृदंग" पर डाला प्रकाश
लेखक ब्रजेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि
*वर्षा मेघ पर केंद्रित मेघ के मृदंग इस कत्थक नृत्य नाट्य में, वर्षा मेघों की प्रतीक्षा
 आगमन, संचार और विसर्जन से रूबरू होते रहने से जो विचार हमारे आपके मन में बनते रहते हैं, उन्हें ही छंद लय और ताल के साथ नृत्य नाट्य का रूप दिया गया है।
*वर्षा के घुमंतू मेघ चौमासे में चार नक्षत्र के वंदनवारों से सजे, चौमासे में, मन को न जाने कहां-कहां ले जाते हैं।
 *कभी वर्षा से भीगे हुए ईंधन के धुएं से रुआंसी हुई वृद्धा के आंगन में, कभी धान रोपाई के खेतों में, कभी राधा कृष्ण के झूला उत्सव में....कभी उज्जयिनी के महाकाल की संध्या आरती में।।
*इस प्रस्तुति में मेघ की द द द द ध्वनि के माध्यम से दक्ष प्रजापति ने मनुष्य को दान करते रहने का जो संकेत दिया है,
* प्रकृति और समाज से लिया हुआ, प्रकृति और समाज को वापस देने का, जो संदेश दिया है, उसे याद दिलाना भी एक उद्देश्य है इस नृत्यनाट्य मेघ के मृदंग का।








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