ग्वालियर। “परिवार, समाज और राष्ट्र की उन्नति की कल्पना नारी के बिना नहीं की जा सकती है। किसी भी लोकतंत्र की मजबूत नींव है नारी। शिक्षित नारी ही समाज में खुशी और शांति ला सकती है। एक शिक्षित नारी ना केवल अपने परिवार बल्कि पूरे समाज को सही दिशा प्रदान करती है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर जानते हैं नारी की मौजूदा स्थिति के साथ राष्ट्र में उसका योगदान और महत्व...“
डॉ. केशव पाण्डेय।
8 मार्च को प्रतिवर्ष अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। यह दिन दुनियाभर में महिलाओं के सम्मान का आह्वान करता है। इस दिन राष्ट्रीय, भाषाई, सांस्कृतिक, आर्थिक या राजनीतिक सीमाओं की परवाह किए बिना महिलाओं की उपलब्धियों को देखा जाता है। दुनिया में अतीत और वर्तमान की महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनता है। सभी बाधाओं के पार, सभी सांस्कृतिक और जातीय समूहों की महिलाएं शांति, न्याय, समानता और विकास के लिए अपनी दशकों पुरानी लड़ाई को याद करने के लिए एक साथ आती हैं। यह दिन महिलाओं को पुरुषों के समान अवसर प्राप्त करने के पक्ष में बोलने का मौका देता है, जिस क्षेत्र में भी वे आगे बढ़ना चाहती हैं।
इस दिवस के इतिहास की बात करें तो पहला अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड जैसे कुछ यूरोपीय देशों में मनाया गया था। 1975 तक संयुक्त राष्ट्र ने महिला दिवस को आधिकारिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय मान्यता दे दी। चीन, अफगानिस्तान, रूस और बुर्किना फासो जैसे कुछ देशों में यह दिवस एक राष्ट्रीय अवकाश है। क्योंकि यह दिन महिलाओं को आगे बढ़ने में आने वाली भविष्य की चुनौतियों के प्रति प्रतिबद्धता को प्रेरित करने का भी अवसर है।
प्रतिवर्ष अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को एक विशेष थीम के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष के लिए “एक्सेलरेट एक्शन“ थीम तय की गई है। इसका मतलब है कि महिला हित में की जाने वाली कार्रवाई में तेजी लाएं।
दिवस का महत्व प्रति वर्ष बढ़ता ही जा रहा है, क्योंकि यह हमें समाज में महिलाओं के योगदान और उनकी स्थिति को पुनः अवलोकन करने का अवसर प्रदान करता है। विशेष रूप से भारतीय समाज में, महिलाओं की स्थिति में बीते दशकों में अभूतपूर्व बदलाव आया है। पहले जहां महिलाओं को सीमित स्थान और अधिकारों के साथ जीने पर मजबूर किया जाता था, वहीं अब वे हर क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने में सफल हो रही हैं।
दिवस प्रेरित करता है कि हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहिए जहां किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो। इस दिन हम यह सीख पाते हैं कि महिलाओं का कैसे और क्यों सम्मान किया जाना चाहिए। क्योंकि यह दिवस महिलाओं के अधिकारों का सम्मान और उनकी उपलब्धियों को देखने के लिए मनाया जाता है। इस दिन अपने अस्तित्व के निर्माण करने वाली हर उस नारी का सम्मान किया जाता है जिसने समाज के लिए उल्लेखनीय कार्य किए हैं।
महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए यह समाज में उत्पन्न हर भेदभाव का नाश करता है। इस दिन समाज में सकारात्मकता का संचार करने के लिए, नारियों को समान अधिकार देने की आवश्यकता है। महिलाओं के संघर्षों को सम्मानित करने के साथ ही, हमें प्रगतिपथ पर अग्रसित होना चाहिए। साथ ही समाज की चेतना को जागृत करना चाहिए। ताकि समाज के उत्थान में महिलाएं भी पुरुषों के कंधों से कंधें मिलाकर चल सकें। नारी के संघर्षों को सम्मानित करने का भाव समाज में सकारात्मक बदलाव लाना है। यह दिन नारी शक्ति को नमन करके समाज को जोड़ने का कार्य करता है। इस दिन हम सभी महिला सशक्तिकरण और नारी के अधिकारों के संरक्षण के लिए संकल्प लेते हैं।
इनमें प्रमुख हैं...लैंगिक समानता। महिला शिक्षा। महिलाओं का स्वास्थ्य। महिलाओं के खिलाफ हिंसा। महिला उद्यमिता।
हालांकि, यह जरूरी है कि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस सिर्फ एक प्रतीकात्मक समारोह न बनकर, महिला सशक्तिकरण की दिशा में निरंतर प्रयासों में बदल जाए। समाज को महिलाओं को शिक्षित करने, उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने और उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए निरंतर प्रयास करने होंगे।
क्योंकि मौजूदा परिवेश में भारतीय नारी केवल घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं रही हैं, बल्कि वे विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। शिक्षा, विज्ञान, राजनीति, खेल, कला, साहित्य और व्यापार हर क्षेत्र में महिलाएं अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं। आज की महिलाएं आत्मनिर्भर, शिक्षित और सशक्त हैं। उदाहरण के तौर पर, इंदिरा गांधी, मदर टेरेसा, कर्णम मल्लेश्वरी, मेरी कॉम, सुष्मिता सेन, लता मंगेशकर, मेघा पाटनकर, सविता वर्मा, उमा भारती और राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू जैसी महिलाएं समाज में बदलाव की प्रेरणास्त्रोत बन चुकी हैं।
आधुनिक भारतीय महिला की सबसे बड़ी उपलब्धि उसकी शिक्षा और स्वतंत्रता है। पहले के समय में बेटियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था, लेकिन आज की महिला को उच्च शिक्षा प्राप्त करने का पूरा अधिकार है। सरकारी योजनाओं और समाज के जागरूक होने के कारण लड़कियों के स्कूल में जाने की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आज की नारी न केवल विद्यालयों और कॉलेजों तक सीमित है, बल्कि उच्च शिक्षा प्राप्त कर आईआईटी, मेडिकल, और अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों में भी अपनी पहचान बना रही है।
बावजूद इसके महिलाओं के खिलाफ हिंसा, भेदभाव और शोषण की घटनाएं भारतीय समाज में दुर्भाग्यवश बढ़ी हुई हैं, हालांकि उन्हें उनके कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूक किया गया है। महिलाओं के लिए कानूनों में सुधार किया गया है, जैसे- दहेज प्रथा के खिलाफ कानून, घरेलू हिंसा के खिलाफ कानून, और यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून। इन कानूनों के माध्यम से महिलाओं को संरक्षण मिलता है और वे अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने में सक्षम होती हैं।
यही कारण है कि समाज की सोच में भी अब बदलाव आ रहा है। पहले महिलाओं को केवल घर संभालने वाली और बच्चों की देखभाल करने वाली माना जाता था, लेकिन अब महिलाओं के बारे में विचार में बदलाव आया है। समाज अब यह समझने लगा है कि महिलाएं केवल घर की धुरी नहीं होतीं, बल्कि वे समाज के हर क्षेत्र में सक्रिय योगदान कर सकती हैं।
भारतीय महिलाओं की स्थिति में बहुत सकारात्मक बदलाव आया है, लेकिन अभी भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के मामले में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। साथ ही, कार्यस्थलों पर भी महिलाओं को समान वेतन और अवसरों की कमी महसूस होती है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न की घटनाएं अब भी समाज में हो रही हैं, जो उनके सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ी बाधा हैं।
खास दिवस पर हमें यह समझने की आवश्यकता है कि भारतीय महिलाओं की स्थिति में बदलाव तो हुआ है, लेकिन यह परिवर्तन अब भी जारी है। हमें समाज में और भी सुधार करने की आवश्यकता है ताकि महिलाएं हर दृष्टिकोण से सशक्त और सुरक्षित महसूस करें। महिला दिवस न केवल महिलाओं की उपलब्धियों का उत्सव है, बल्कि यह एक मौका है हमें महिलाओं के अधिकारों के प्रति जागरूक होने और समाज में समानता स्थापित करने का। इसलिए, इस दिन का उद्देश्य सिर्फ महिलाओं की सराहना करना नहीं, बल्कि उनके अधिकारों और समता के प्रति प्रतिबद्धता को और मजबूत करना है।
करना जीवन में सदा, नारी का सम्मान। सूना है नारी बिना, सारा यह संसार....।। वह मकान को घर करे, देकर अपना प्यार। नारी तू अबला नहीं, स्वयं शक्ति पहचान।।

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