सिंधु जल संधि को स्थगित:
इस क्रम में भारत ने 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ सिंधु जल समझौता तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दिया गया है। यह फैसला तब तक लागू रहेगा जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं करता।
(फोटो साभार: पीटीआई)
राजनयिक संबंधों में कटौती:
01 मई, 2025 तक और कटौती के माध्यम से उच्चायोगों में तैनात लोगों की कुल संख्या वर्तमान में 55 से घटाकर 30 कर दी जाएगी। नई दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग के रक्षा, सैन्य, नौसेना, और वायु सलाहकारों को अवांछित व्यक्ति (पर्सोना नॉन ग्राटा) घोषित किया गया है, जिन्हें एक सप्ताह के भीतर भारत छोड़ना होगा।
अटारी बॉर्डर बंद:
अटारी एकीकृत जांच चौकी को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया गया है। वैध दस्तावेजों के साथ पाकिस्तान गए भारतीय नागरिकों को 1 मई 2025 तक लौटने की अनुमति दी जाएगी।
पाकिस्तानी नागरिकों पर वीजा प्रतिबंध: पाकिस्तानी नागरिकों को दक्षेस वीजा छूट योजना (SVES) के तहत भारत यात्रा की अनुमति नहीं होगी। पहले जारी किए गए सभी SVES वीजा रद्द कर दिए गए हैं, और भारत में मौजूद पाकिस्तानी नागरिकों को 48 घंटे के भीतर देश छोड़ने का आदेश दिया गया है।
भारतीय स्टाफ की वापसी:
भारत ने इस्लामाबाद में अपने उच्चायोग से रक्षा, नौसेना, और वायु सलाहकारों को वापस बुलाने का फैसला किया है। दोनों देशों के उच्चायोगों में ये पद अब निरस्त माने जाएंगे।
इन फैसलों की घोषणा विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में की। उन्होंने कहा कि CCS ने पहलगाम हमले के अपराधियों और उनके प्रायोजकों को जवाबदेह ठहराने का संकल्प लिया है।
इस्लामाबाद:
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने बुधवार रात घोषणा की कि भारत द्वारा सिंधु जल संधि को स्थगित करने, राजनयिक संबंधों में कटौती और अन्य कठोर कदमों के जवाब में प्रतिक्रिया तय करने के लिए पाकिस्तान का शीर्ष असैन्य और सैन्य नेतृत्व गुरुवार को बैठक करेगा। यह बैठक जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत के कड़े कदमों के जवाब में बुलाई गई है। पहलगाम आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत हुई थी और आतंकियों ने हिंदू धर्म के अनुयायियों की पहचान करके उन पर गोलियां चलाई थीं। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री आसिफ ने अपने बयान में कहा, ‘प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की अध्यक्षता में राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की बैठक आयोजित होगी। भारतीय कदमों का उचित जवाब देने के लिए निर्णय लिए जाएंगे।’ इस बैठक में थल सेना, नौसेना, और वायु सेना के प्रमुखों के साथ-साथ प्रमुख कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे। ऐसी बैठकें आमतौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े गंभीर मुद्दों पर चर्चा के लिए बुलाई जाती हैं। पहलगाम में हुई जघन्य आतंकी वारदात के बाद पाकिस्तान पर एक बार फिर उंगलियां उठने लगी हैं, और माना जा रहा है कि भारत सरकार अभी और कड़ी कार्रवाई कर सकती है।
सिंधु जल समझौता क्या है?
सिंधु जल समझौता (Indus Waters Treaty) भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को कराची में हुआ एक ऐतिहासिक जल बंटवारा समझौता है। इसकी मध्यस्थता विश्व बैंक ने की थी, और इस पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। यह समझौता सिंधु नदी और उसकी पांच सहायक नदियों, रावी, ब्यास, सतलज, झेलम, और चिनाब के जल के बंटवारे को नियंत्रित करता है।
इस समझौते में किसको क्या मिला?
सिंधु जल समझौते के तहत भारत और पाकिस्तान में नदियों के पानी और अन्य संसाधनों का बंटवारा किया गया है। इन नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में बांटा गया है। पूर्वी नदियों यानी कि रावी, ब्यास और सतलज पर भारत को पूर्ण नियंत्रण दिया गया है, जिसका उपयोग वह बिना किसी रोकटोक के बिजली उत्पादन, कृषि, और अन्य जरूरतों के लिए कर सकता है। वहीं, पश्चिमी नदियों यानी कि सिंधु, झेलम और चिनाब का अधिकांश पानी पाकिस्तान को आवंटित किया गया है, लेकिन भारत को इन नदियों पर सीमित उपयोग (जैसे, गैर-उपभोगी उपयोग और बिजली उत्पादन) की इजाजत है। समझौते के मुताबिक, सिंधु नदी प्रणाली का 80 फीसदी पानी पाकिस्तान को मिलता है, जबकि बाकी का पानी भारत के हिस्से में आता है। सिंधु जल आयोग की बैठकें दोनों देशों के बीच नियमित रूप से आयोजित होती हैं ताकि समझौते के कार्यान्वयन और विवादों का समाधान किया जा सके। आखिरी बैठक 30-31 मई 2022 को नई दिल्ली में हुई थी, जिसे दोनों देशों ने सौहार्दपूर्ण बताया था। हालांकि अब भारत ने सिंधु जल समझौते पर रोक लगाने का ऐलान किया है जिसका पाकिस्तान पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है।
समझौता स्थगित होने का पाकिस्तान पर प्रभाव
सिंधु जल समझौता पाकिस्तान के लिए एक लाइफलाइन की तरह है, क्योंकि यह देश अपनी कृषि, पेयजल, और औद्योगिक जरूरतों के लिए सिंधु और उसकी सहायक नदियों पर अत्यधिक निर्भर है। समझौते को स्थगित करने का भारत का फैसला पाकिस्तान पर गंभीर और बहुआयामी प्रभाव डाल सकता है:
जल संकट:
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था, खासकर कृषि, सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है। इस प्रणाली का पानी पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांतों में 17 लाख एकड़ से अधिक कृषि भूमि को सिंचित करता है। यदि भारत पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) के पानी को रोकता है या डायवर्ट करता है, तो पाकिस्तान में गंभीर जल संकट पैदा हो सकता है, जिससे फसल उत्पादन में भारी कमी आएगी।
खाद्य सुरक्षा पर खतरा:
पाकिस्तान की लगभग 70% आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। पानी की कमी से गेहूं, चावल, और कपास जैसी प्रमुख फसलों का उत्पादन प्रभावित होगा, जिससे खाद्य असुरक्षा और कीमतों में वृद्धि की स्थिति बन सकती है।
ऊर्जा संकट:
पाकिस्तान अपनी बिजली उत्पादन क्षमता का एक बड़ा हिस्सा जलविद्युत परियोजनाओं से प्राप्त करता है, जो सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर हैं। पानी की आपूर्ति में कमी से बिजली उत्पादन प्रभावित होगा, जिससे देश में पहले से मौजूद ऊर्जा संकट और गहरा सकता है।
आर्थिक नुकसान:
जल संकट और कृषि उत्पादन में कमी से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को भारी झटका लगेगा। विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार, सिंधु नदी घाटी की खेती अत्यधिक उपजाऊ है और अगर इस पर असर पड़ता है तो पहले से ही खस्ताहाल पाकिस्तान की जीडीपी और ज्यादा बुरी हालत में पहुंच सकती है।
सामाजिक अशांति:
पानी और खाद्य संकट से पाकिस्तान में सामाजिक अशांति और विरोध प्रदर्शन बढ़ सकते हैं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां लोग पहले से ही आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं। इसके अलावा सिधु नदी के पानी को लेकर पहले ही पाकिस्तान के राज्यों में जंग छिड़ी हुई है।
इस मामले को विश्व बैंक या अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ले जा सकता है, क्योंकि समझौता विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ था। हालांकि, भारत ने पहले ही हेग के स्थायी मध्यस्थता न्यायालय की कार्यवाही में भाग लेने से इनकार कर दिया है, जिससे पाकिस्तान की कानूनी स्थिति कमजोर हो सकती है। इस तरह देखा जाए तो पाकिस्तान के पास कोई खास चारा बचा नहीं है। बता दें कि 1948 में भारत ने दो प्रमुख नहरों का पानी रोक दिया था, जिससे पाकिस्तानी पंजाब में 17 लाख एकड़ जमीन पानी के लिए तरस गई थी। अब एक बार फिर पाकिस्तान में भयंकर जल संकट आ सकता है।

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